Judge Cash Scandal: दिल्ली हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा के लुटियंस दिल्ली स्थित सरकारी आवास में 14 मार्च 2025 को आग लगने की घटना के बाद उनके स्टोर रूम से 500-500 रुपये के जले हुए नोटों के बंडलों से भरे बोरे मिलने का खुलासा हुआ. इस घटना ने न्यायिक हलकों में हड़कंप मचा दिया. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को गंभीरता से लेते हुए CJI संजीव खन्ना के नेतृत्व में कार्रवाई शुरू की. 3 मई 2025 को तीन सदस्यीय जांच कमेटी ने अपनी जांच रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट को सौंपी. जिसे 4 मई को CJI को दी गई. अब इस मामले में आगे का फैसला CJI लेंगे.
21 मार्च 2025 को CJI संजीव खन्ना ने मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय कमेटी गठित की जिसमें शामिल थे.
जस्टिस शील नागू (पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस)
जस्टिस जी.एस. संधावालिया (हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस)
जस्टिस अनु शिवरामन (कर्नाटक हाईकोर्ट की जज)
यह कमेटी इन-हाउस जांच प्रक्रिया के तहत कार्य कर रही थी. कमेटी ने 28 मार्च को जस्टिस वर्मा से पूछताछ की और उनके घर में आग लगने व कैश बरामदगी के बारे में सवाल पूछे.
जस्टिस वर्मा ने आरोपों को खारिज करते हुए इसे साजिश करार दिया. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट को बताया-
आग उनके घर के स्टोर रूम में लगी. जहां रद्दी सामान रखा जाता था. न कि मुख्य आवास में.
न तो उन्होंने और न ही उनके परिवार ने वहां कोई कैश रखा था.
आग बुझाने के बाद बरामद जले नोट उन्हें नहीं दिखाए गए और 15 मार्च को कोई नोट निकालने की बात से उन्होंने इनकार किया.
दिल्ली पुलिस ने तुगलक रोड थाने के SHO, हवलदार रूपचंद, सब-इंस्पेक्टर रजनीश और अन्य 8 कर्मियों के मोबाइल फोन जब्त कर फोरेंसिक लैब भेजे. यह जांच की जा रही है कि क्या आग के दौरान कोई वीडियो रिकॉर्ड किया गया और उसमें छेड़छाड़ हुई. डीसीपी (नई दिल्ली) देवेश की टीम ने 26 मार्च को जस्टिस वर्मा के स्टोर रूम को सील किया.
इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन ने जस्टिस वर्मा के ट्रांसफर का कड़ा विरोध किया-
23 मार्च को जनरल हाउस मीटिंग में महाभियोग प्रस्ताव और ED-CBI जांच की मांग पारित की गई.
25 मार्च को हड़ताल शुरू की, जिसे बाद में आम लोगों के हित में वापस लिया गया.
27 मार्च को बार प्रतिनिधियों ने CJI और कॉलेजियम से मुलाकात कर ट्रांसफर पर पुनर्विचार की मांग की.
2018 में जस्टिस वर्मा का नाम सिम्भावली शुगर मिल घोटाले में आया था. ओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स की शिकायत पर CBI ने उनके खिलाफ FIR दर्ज की थी. जिसमें आरोप था कि मिल ने किसानों के लिए 97.85 करोड़ रुपये के लोन का दुरुपयोग किया. जस्टिस वर्मा तब मिल के नॉन-एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर थे. हालांकि जांच धीमी पड़ी और फरवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर CBI ने जांच बंद कर दी.
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