Kapil Sibal: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के 17 अप्रैल 2025 को दिए गए बयान जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के राष्ट्रपति को बिलों पर समयबद्ध फैसले का निर्देश देने पर आपत्ति जताई. इस बयान पर 18 अप्रैल को राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कड़ा विरोध दर्ज किया. सिब्बल ने 1975 के इंदिरा गांधी चुनाव मामले का हवाला देते हुए धनखड़ की मंशा पर सवाल उठाए और न्यायपालिका की स्वतंत्रता का बचाव किया.
17 अप्रैल को राज्यसभा इंटर्न्स को संबोधित करते हुए उपराष्ट्रपति धनखड़ ने सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल के फैसले पर सवाल उठाए. जिसमें तमिलनाडु के गवर्नर द्वारा 10 बिलों को रोकने को अवैध ठहराया गया था. कोर्ट ने यह भी कहा था कि राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति को भेजे गए बिलों पर तीन महीने में फैसला होना चाहिए. धनखड़ ने इसे ‘न्यायिक अतिक्रमण’ करार देते हुए कहा ‘अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं. संविधान का अनुच्छेद 142 लोकतांत्रिक शक्तियों के खिलाफ 24×7 न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है. जज अब सुपर संसद की तरह कानून बना रहे हैं. कार्यकारी कार्य कर रहे हैं और उनकी कोई जवाबदेही नहीं है.’
उन्होंने जस्टिस यशवंत वर्मा के घर नकदी मिलने के मामले में FIR न होने पर भी सवाल उठाए पूछा ‘अगर यह आम आदमी का घर होता तो जांच की गति रॉकेट की तरह होती. क्या जज कानून से ऊपर हैं?’
18 अप्रैल को कपिल सिब्बल ने धनखड़ के बयान को असंवैधानिक और पक्षपातपूर्ण बताते हुए कहा ‘मैं उपराष्ट्रपति की बात सुनकर हैरान और दुखी हूं. आज अगर किसी संस्था पर देशभर में भरोसा है तो वह न्यायपालिका है. राष्ट्रपति नाममात्र का मुखिया है. जो मंत्रिमंडल की सलाह पर काम करता है. धनखड़ को किसी पार्टी की तरफदारी नहीं करनी चाहिए.’
सिब्बल ने 1975 के इंदिरा गांधी चुनाव मामले का जिक्र किया. जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 12 जून 1975 को जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा के फैसले से इंदिरा की रायबरेली सीट से जीत को अवैध ठहराया था. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस वी. आर. कृष्ण अय्यर ने 24 जून 1975 को अंतरिम राहत दी. लेकिन उनकी वोटिंग का अधिकार छीन लिया. सिब्बल ने तंज कसते हुए कहा ‘लोगों को याद होगा. तब एक जज जस्टिस कृष्ण अय्यर का फैसला धनखड़ जी को मंजूर था. लेकिन अब दो जजों की बेंच का सरकार के खिलाफ फैसला गलत है?’
1971 के लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी ने रायबरेली से जीत हासिल की थी. उनके प्रतिद्वंद्वी राज नारायण ने आरोप लगाया कि इंदिरा ने सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग और चुनाव नियमों का उल्लंघन किया. 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस सिन्हा ने उनकी सांसदी रद्द कर दी और छह साल तक चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस कृष्ण अय्यर ने अंतरिम राहत दी लेकिन वोटिंग का अधिकार नहीं दिया. इसके बाद इंदिरा ने 26 जून 1975 को आपातकाल लागू किया और 42वें संशोधन के जरिए प्रधानमंत्री के चुनाव को न्यायिक समीक्षा से बाहर कर दिया. बाद में सुप्रीम कोर्ट ने संशोधित संविधान के आधार पर इंदिरा के पक्ष में फैसला दिया.
सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को अनुच्छेद 142 के तहत पूर्ण न्याय सुनिश्चित करने का अधिकार है. अगर सरकार को फैसला पसंद नहीं तो वह रिव्यू याचिका दायर कर सकती है या अनुच्छेद 143 के तहत सलाह मांग सकती है. उन्होंने तमिलनाडु मामले में कोर्ट के फैसले का बचाव करते हुए कहा ‘जब कार्यपालिका काम नहीं करती, तो न्यायपालिका को हस्तक्षेप करना पड़ता है.
धनखड़ ने दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व जज जस्टिस यशवंत वर्मा के घर 14-15 मार्च 2025 को नकदी मिलने के मामले में FIR न होने पर सवाल उठाए. उन्होंने कहा ‘सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की इन-हाउस कमेटी का कोई संवैधानिक आधार नहीं है. यह केवल सिफारिश दे सकती है. कार्रवाई का अधिकार संसद के पास है.’ उन्होंने जोर देकर कहा कि संविधान केवल राष्ट्रपति और राज्यपालों को अभियोजन से छूट देता है जजों को नहीं.
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