नई दिल्लीः बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का निर्णय किया गया है। उन्हें बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और पिछड़े वर्गों के हितों की वकालत करने के लिए याद किया जाता है। कर्पूरी बिहार में एक बार उपमुख्यमंत्री दो बार मुख्यमंत्री और वर्षों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे। बता दें कि 1952 की पहली विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद वे बिहार विधानसभा का चुनाव कभी नहीं(Karpuri Thakur) हारे थे। उन्हें ये सम्मान मरोणोपरांत दिया जाएगा।

कर्पूरी ठाकुर हिंदी भाषा के समर्थक थे

बता दें कि कर्पूरी ठाकुर हिंदी भाषा के समर्थक थे और बिहार के शिक्षा मंत्री के रूप में उन्होंने मैट्रिक पाठ्यक्रम से अंग्रेजी विषय को हटा दिया था। उस दौरान उन्होंने यह आरोप लगाया गया था कि राज्य में अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा से निम्न मानक( low standards) बिहारी छात्रों को परेशानी हुई। साल 1970 में गैर-कांग्रेसी समाजवादी मुख्यमंत्री बनने से पहले ठाकुर ने बिहार के मंत्री और उपमुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया था। इन्होंने बिहार में पूर्ण शराबबंदी भी लागू की। इनके शासनकाल के दौरान बिहार के पिछड़े इलाकों में उनके नाम पर कई स्कूल और कॉलेज स्थापित किए गए थे।

अकादमिक मालाकार ने कही थी ये बात

वहीं अकादमिक एस एन मालाकार, जो बिहार के एमबीसी(Karpuri Thakur) में से एक हैं। उन्होंने 1970 के दशक में ऑल इंडिया स्टूडेंट्स फेडरेशन (एआईएसएफ) से जुड़े एक छात्र कार्यकर्ता के रूप में कर्पूरी ठाकुर की आरक्षण नीति का समर्थन करने वाले आंदोलन में भाग लिया था। इस दौरान उन्होंने यह तर्क दिया था कि बिहार के निम्नवर्गीय वर्ग – एमबीसी जनता पार्टी सरकार के समय ही दलितों और उच्च ओबीसी का आत्मविश्वास पहले ही बढ़ चुका था।

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