Emergency:25 जून 1975 को भारतीय इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में जाना जाता है। पचास साल पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इसी दिन आपातकाल लगाया था। नागरिकों के मौलिक अधिकार भी खत्म कर दिए गए थे। अभिव्यक्ति की आज़ादी छीन ली गई थी। देश के लोकतांत्रिक अधिकारों को एक झटके में कुचल दिया गया था। फिर इंदिरा के अत्याचारों के खिलाफ़ आवाज़ उठाने वाले नेताओं से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं तक को जेल में डाल दिया गया था। बता दें इस समय बिहार के कई नायकों ने लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में आपातकाल के खिलाफ लड़ाई में अपनी भूमिका निभाई थी।

इनमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव समेत कई अनेकों छात्र नेताओं के पास कई ऐसी यादें हैं जो जान कर आपके भी रोंगटे खड़े हो जाएंगे। उदयकांत मिश्र की पुस्तक ‘दोस्तों की नजर में नीतीश कुमार’ में उनका एक संस्मरण प्रकाशित है। इस किताब में सीएम नीतीश ने इमरजेंसी लागू होने के अगले दिन के वातावरण का उल्लेख किया  है। उन्होंने 26 जून 1975 की घटना का जिक्र किया है जिसमें कई खुलासे किये हैं।

पुलिस की छापेमारी

‘दोस्तों की नजर में नीतीश कुमार’ पुस्तक में  नीतीश कुमार कहते हैं कि 1975 में जुलाई के बाद बिहार में बाढ़ आई थी। पुलिस के जाल से बचने के लिए हम लोग एक गांव से दूसरे गांव छिपते रहे। गया में फल्गु नदी के किनारे जेपी ने खादी ग्राम उद्योग संघ की स्थापना की थी। हम लोग वहां एक बड़ी सभा कर रहे थे, जिसमें मैं भाषण दे रहा था। मेरे साथ लालू जी और जगदीश शर्मा जी भी थे, लेकिन किसी तरह पुलिस को खबर मिल गई और वहां पुलिस की छापेमारी हो गई। सभा में भाग ले रहे छात्र संघर्ष समिति, सर्वोदय संघर्ष वाहिनी और विपक्षी दलों के 16-17 बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। लालू जी समेत हम 12-13 लोग वहां से भागने की कोशिश कर रहे थे। बाउंड्री वॉल के बगल में लकड़ियों के कई बड़े-बड़े गट्ठर पड़े थे, किसी तरह उन ढेरों पर चढ़कर हम लोग 10-11 फीट ऊंची दीवार की मुंडेर तक पहुंचे, लेकिन दूसरी तरफ सूखी हुई फल्गु नदी में रेत और भी गहरी थी।

जमीन पर गिर पड़े लालू जी

पुस्तक में  नीतीश कुमार कहते हैं कि सीएम नीतीश आगे कहते हैं, मेरी और लालू जी की उम्र करीब 25 साल होगी, लेकिन भवेश चंद्र प्रसाद जी जो हमसे बड़े हैं, यहां तक ​​कि राम सुंदर दास जी जो करीब 50 साल के हैं, उन्हें भी इतनी ऊंचाई से भागना पड़ा। मुझे ये सब अच्छा नहीं लगा, लेकिन उस समय हमारी प्राथमिकता किसी भी कीमत पर गिरफ्तारी से बचना था। हम सभी अपने कई साथियों के साथ पुलिस की पकड़ से बचने के लिए जितनी तेजी से भाग सकते थे, भागते रहे। काफी देर तक भागने के बाद लालू जी बेदम होकर जमीन पर गिर पड़े।

सोने की अंगूठी

पुस्तक में  नीतीश कुमार कहते हैं कि नीतीश कुमार ने आगे कहा, इस भागदौड़ में मेरी मूंगा जड़ित सोने की अंगूठी, जो दादी के झुमकों से बनी थी, गया तीर्थ की फल्गु नदी में गिरकर खो गई। इसके बाद हम कई जगहों पर भागते रहे। लेकिन, पुलिस का खुफिया तंत्र इतना समय पर था कि अगर हम कहीं कुछ घंटे भी रुक जाते तो उन्हें खबर मिल जाती। हालांकि, पुलिस और लोगों से छिपने के बावजूद मुझे आपातकाल के दौरान गिरफ्तार कर लिया गया। आपातकाल के दौरान मैं फरार होने के आखिरी समय को छोड़कर 9 महीने जेल में रहा।

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