Inkhabar
  • होम
  • देश-प्रदेश
  • एक्सीडेंटल पीएम ही नहीं, एक्सीडेंटल वित्त मंत्री भी थे वो, मनमोहन की जुबानी पूरी कहानी!

एक्सीडेंटल पीएम ही नहीं, एक्सीडेंटल वित्त मंत्री भी थे वो, मनमोहन की जुबानी पूरी कहानी!

मनमोहन सिंह के बारं में कहा जाता है कि वह एक्सीडेंटल प्रधानमंत्री थे. इसी नाम से उनके मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने एक किताब भी लिखी है लेकिन मनमोहन सिंह ने जो किस्सा खुद सुनाया था उसके मुताबिक वह एक्सीडेंटली वित्त मंत्री भी बने थे.

Former PM Manmohan Singh with his book Changing India
inkhbar News
  • Last Updated: December 27, 2024 21:27:51 IST

नई दिल्ली. पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस दुनिया से गुरुवार को कूच कर गये. कल वह पंचतत्व में विलीन हो जाएंगे. अर्थशास्त्री से ब्यरोक्रेट और उसके बाद वित्त मंत्री व प्रधानमंत्री पद के सफर से जुड़े कई ऐसे किस्से हैं जिससे साबित होता है कि नियति उन्हें राजनीति में खीच लाई. उनके बार में कहा जाता है कि वह एक्सीडेंटल प्रधानमंत्री थे. इसी नाम से उनके मीडिया सलाहकार रहे संजय बारू ने एक किताब भी लिखी है लेकिन मनमोहन सिंह ने जो किस्सा खुद सुनाया था उसके मुताबिक वह एक्सीडेंटली वित्त मंत्री भी बने थे.

एक्सीडेंटल वित्त मंत्री 

मौका था मनमोहन सिंह की किताब चेंजिंग इंडिया की लॉचिंग का. उनकी किताब चेंजिंग इंडिया में 1956 से 2017 तक के उनके लेखों और भाषणों का संकलन है जो पांच वॉल्यूम में दिसंबर 2018 में लॉन्च हुई थी. उस दिन आर्थिक सुधारों के जनक काफी खुश थे और बोल पड़े बेशक उन्हें एक्सीडेंटल प्रधानमंत्री कहा जाता है लेकिन हकीकत यह है कि वह एक्सीडेंटल वित्त मंत्री भी रहे. 1991 में जब नरसिंह राव ने प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी संभाली तो देश की आर्थिक स्थिति खराब थी. उनकी सरकार पूर्ण बहुमत की सरकार नहीं थी इसलिए उनके सामने ढेरों चुनौतियां थी. वह अर्थव्यवस्था के किसी एक्सपर्ट की तलाश में थे.

राव ने दबाव डालकर बनाया मंत्री

बकौल मनमोहन सिंह उस समय वह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के चेयरमैन थे और अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभा रहे थे. एक दिन अचानक प्रधानमंत्री पीवी नरसिंह राव के प्रधान सचिव एलेक्जेंडर उनके घर आये. वह संदेश लेकर आये थे कि मैं वित्त मंत्री बनूं लेकिन उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लिया. वह अपने काम में रमे हुए थे और राजनीति में जाने के बिल्कुल इच्छुक नहीं थे. जैसे ही यह बात राव साहब को पता चली उन्होंने ढूंढवाना शुरू कर दिया.

दोनों ने रखी अपनी अपनी शर्त

“यूजीसी के दफ्तर में मैं मिल गया. इसके बाद मैं तत्कालीन प्रधानमंत्री के पास पंहुचा, उन्होंने पूछा आपको एलेक्जेंडर ने कुछ बताया नहीं. इस पर मैंने बोला कि बताया था लेकिन उसको मैंने गंभीरता से नहीं लिया. मेरे सामने फिर से वही प्रस्ताव दोहराया गया. इस पर मनमोहन सिंह ने कहा कि देश की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, परिस्थितियां बहुत जटिल है लिहाजा इलाज कड़वा होगा, कड़े फैसले लेने पड़ेंगे. इस पर राव साहब ने कहा कि आपको फ्री हैंड दिया. थोड़ा मुस्कुराये फिर बोले मेरी भी एक शर्त है, ध्यान रखिएगा अगर सब ठीक-ठाक और अच्छा रहा, तो सारा क्रेडिट हम लेंगे. अगर फेल हुए, तो जिम्मेदार आपको ठहराएंगे.’’

आर्थकि सुधार के जनक

मनमोहन सिंह ने आगे जोड़ा कि उनसे पहले रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर आई जी पटेल को यह प्रस्ताव दिया गया था लेकिन उन्होंने मना कर दिया था. इस तरह मनमोहन सिंह एक्सीडेंटल वित्त मंत्री बने थे और वहीं से भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार की नींव पड़ी. इसके बाद उन्होंने  पीछे मुड़कर नही देखा.
Read Also-

पीएम बनना था प्रणब को, बन गये मनमोहन सिंह, जानें 9 दिन की वो कहानी…

पाकिस्तान से जब आया था वो दोस्त, दे गया डॉ. मनमोहन सिंह को कीमती तोहफा

Tags