नई दिल्ली: भारत ने चंद्रयान 4 को लॉन्च करने की तैयारी कर ली है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि चंद्रयान मिशन 4 को 2027 में लॉन्च किया जाएगा। इस मिशन के जरिए चांद की चट्टानों के नमूने धरती पर लाए जाएंगे। उन्होंने कहा कि चंद्रयान 4 में उच्च क्षमता वाले एलवीएम 3 रॉकेट दो अलग-अलग लॉन्च के बाद पांच अलग-अलग कंपोनेंट लेकर कक्षा में जाएंगे। इन्हें धरती की कक्षा में असेंबल किया जाएगा।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि चंद्रयान 4 मिशन का उद्देश्य चांद की सतह से नमूने एकत्र करना और उन्हें धरती पर वापस लाना है। गगनयान मिशन अगले साल लॉन्च किया जाएगा। इसमें भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को एक विशेष यान में अंतरिक्ष में धरती की निचली कक्षा में भेजा जाएगा और उन्हें धरती पर सुरक्षित वापस लाया जाएगा।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि भारत साल 2026 में समुद्रयान भी लॉन्च करेगा। इसमें तीन वैज्ञानिक समुद्र तल की खोज के लिए पनडुब्बी के जरिए छह हजार मीटर की गहराई तक जाएंगे। उन्होंने कहा कि यह उपलब्धि गगनयान अंतरिक्ष मिशन समेत भारत के ऐतिहासिक मिशनों की समयरेखा तय करेगी। पीएम मोदी ने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में समुद्रयान मिशन का भी जिक्र किया।
केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि समुद्रयान के जरिए महत्वपूर्ण खनिजों, दुर्लभ धातुओं और अज्ञात समुद्री जैव विविधता के बारे में जानकारी जुटाई जाएगी। गगनयान परियोजना का मानवरहित मिशन भी इसी साल भेजा जाएगा। इसमें रोबोट व्योम मित्र भी शामिल है।
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि इसरो की स्थापना 1969 में हुई थी। लेकिन 1993 तक पहला लॉन्च पैड बनाने में दो दशक से ज्यादा का समय लग गया। इसके बाद 2004 में दूसरा लॉन्च पैड बना, फिर एक दशक का लंबा समय लग गया। वहीं, पिछले 10 सालों में भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र के बुनियादी ढांचे और निवेश का विस्तार हुआ है। हम अब पहली बार भारी रॉकेट के लिए तीसरा लॉन्च साइट बना रहे हैं। छोटे उपग्रहों के लिए श्रीहरिकोटा प्रक्षेपण स्थल का विस्तार तमिलनाडु के तूतीकोरिन जिले में एक नए प्रक्षेपण स्थल के साथ किया जा रहा है।
विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा कि भारत की अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था का वर्तमान मूल्य आठ अरब अमेरिकी डॉलर है। अगले दशक तक यह 44 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुंच सकता है। इससे भारत वैश्विक अंतरिक्ष क्षेत्र में महाशक्ति के रूप में उभरेगा। पिछले दशक में किए गए सुधारों के बाद अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र का प्रवेश हुआ। इससे नवाचार, निवेश और अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ा।
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