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हवस के पुजारियों को नपुंसक करने की मिले सजा, SC ने केंद्र को जारी की नोटिस

SC में दाखिल जनहित याचिका में ऑनलाइन पोर्नोग्राफी पर प्रतिबंध लगाने, सार्वजनिक परिवहन में सामाजिक रूप से उचित व्यवहार करने और बलात्कारियों को नपुंसक बनाने का अनुरोध किया गया है।

SC
inkhbar News
  • Last Updated: December 17, 2024 17:34:16 IST

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को महिलाओं,बच्चों और ट्रांसजेंडर की सुरक्षा के लिए दाखिल जनहित पर केंद्र को नोटिस भेजा है। याचिका में ऑनलाइन पोर्नोग्राफी पर प्रतिबंध लगाने, सार्वजनिक परिवहन में सामाजिक रूप से उचित व्यवहार करने और बलात्कारियों को नपुंसक बनाने का अनुरोध किया गया है। याचिका में समाज में महिलाओं, बच्चों और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सुरक्षित माहौल प्रदान करने के लिए पूरे देश में दिशा-निर्देश तैयार करने के निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

नपुंसक जैसे अनुरोध बर्बर हैं-SC

मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां ने केंद्र और संबंधित विभागों को नोटिस जारी किया और मामले की अगली सुनवाई के लिए जनवरी की तारीख तय की। पीठ ने कहा कि याचिका में उठाए गए कुछ मुद्दे सही हैं और हम उनकी सराहना भी करते हैं, लेकिन नपुंसक जैसे अनुरोध बर्बर हैं।

अदालत ने कहा कि यह सही है कि याचिका उन महिलाओं के लिए भी आवाज उठाती है जो असुरक्षित हैं और सड़कों पर रहने के कारण उन्हें हर दिन ऐसी घटनाओं का सामना करना पड़ता है। याचिकाकर्ता ‘सुप्रीम कोर्ट लॉयर्स एसोसिएशन’ की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता महालक्ष्मी पवनी ने कहा कि महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न की कई घटनाएं छोटे शहरों में होती रहती है, जिनकी रिपोर्ट नहीं हो पाती और कई बार उन्हें दबा दिया जाता है।

मीडिया पर आरोप

महालक्ष्मी पवनी ने कहा कि कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज अस्पताल में एक महिला ट्रेनी डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या की घटना के बाद भी यौन हिंसा की लगभग 95 घटनाएं हुई हैं, लेकिन वे हाइलाइट में नहीं आईं और न ही मीडिया ने उन घटनाओं को दिखाया। वकील ने मीडिया पर आरोप लगाया कि ऐसी घटनाओं के लिए मीडिया ही जिम्मेदार है, क्योंकि यही मीडिया है जो ऐसी घटनाओं को बढ़ावा देता है। दूसरे और तीसरे श्रेणी के शहरों में ऐसी घटनाओं को दबा दिया जाता है।

नपुंसक बनाने की सजा दी जानी चाहिए

महालक्ष्मी पवनी ने कहा कि स्कैंडिनेवियाई देशों की तरह ही यौन हिंसा के अपराधियों को नपुंसक बनाने की सजा दी जानी चाहिए। पीठ ने कहा कि वह याचिका के कई आवेदनों पर विचार नहीं करेगी, क्योंकि वे बर्बर और कठोर हैं, लेकिन कुछ मुद्दे ऐसे हैं जो बिल्कुल नए हैं और उनकी जांच की जरूरत है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि सार्वजनिक परिवहन में उचित व्यवहार बनाए रखने का सवाल विचारणीय मुद्दों में से एक है और बसों, मेट्रो और ट्रेनों में किस तरह का व्यवहार अपनाया जाना चाहिए, इस बारे में जागरूकता पैदा करने की जरूरत है।

सामाजिक व्यवहार पर ध्यान दें

पीठ ने कहा कि सार्वजनिक परिवहन में क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए, इस बारे में जागरूकता पैदा की जानी चाहिए। पीठ ने कहा, ‘सार्वजनिक परिवहन में उचित सामाजिक व्यवहार न केवल सिखाया जाना चाहिए बल्कि इसे सख्ती से लागू भी किया जाना चाहिए क्योंकि एयरलाइनों से भी कुछ अनुचित घटनाएं सामने आई हैं।’

 

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