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नरेंद्र मोदी सरकार पर फिर बरसी कांग्रेस, कहा-HAL की थी राफेल डील, PM ने छीनकर रिलांयस को दे दी

फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद ने शुक्रवार को कहा था कि कारोबारी अनिल अंबानी की रिलायंस डिफेंस को डील में पार्टनर बनाने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार ने नामित किया था. उन्होंने कहा था कि हमारे पास और कोई विकल्प नहीं था. उनके इस बयान के बाद कांग्रेस ने बीजेपी सरकार पर जमकर हमला किया.

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  • Last Updated: September 23, 2018 14:20:32 IST

नई दिल्ली: राफेल सौदे को लेकर कांग्रेस का नरेंद्र मोदी सरकार पर पलटवार जारी है. फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद के बयान के बाद तमाम विपक्षी पार्टियां बीजेपी को घेरने में जुट गई है. कांग्रेस ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से दो ट्वीट किए. पहले ट्वीट में कहा गया कि हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) के कर्मचारी राफेल डील को लेकर हालिया खुलासे से नाखुश हैं.

इस पर कैप्शन के रूप में कांग्रेस ने लिखा, ताजा खुलासे से एचएएल के कर्मचारी निराश हैं. राफेल डील दिखाती है कि न सिर्फ पीएम भ्रष्टाचारी हैं बल्कि उनका मेक इन इंडिया भी जुमला है. दूसरे ट्वीट में कांग्रेस ने एक वीडियो शेयर की है, जिसमें दावा किया जा रहा है कि राफेल बनाने वाली कंपनी दसॉल्ट एविएशन के चेयरमैन एरिक थ्रैपियर ने 25 मार्च 2015 को भारतीय वायुसेना और एचएएल स्टाफ की मौजूदगी में राफेल कॉन्ट्रैक्ट की जिम्मेदारियां साझा करने की बात कही थी. लेकिन 17 दिनों के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने यह कॉन्ट्रैक्ट रिलायंस को दे दिया. निर्मला सीतारमण को देश से झूठ बोलने के लिए इस्तीफा दे देना चाहिए.

गौरतलब है कि एक फ्रांसीसी वेबसाइट ने एक लेख में ओलांद के हवाले से कहा था कि भारत सरकार ने फ्रांस सरकार से रिलायंस डिफेंस को इस सौदे के लिए भारतीय साझीदार के रूप में नामित करने के लिए कहा था. ओलांद ने कहा था, “हमारे पास कोई विकल्प नहीं था. भारत सरकार ने यह नाम (रिलायंस डिफेंस) सुझाया था और दसॉल्ट ने अंबानी से बात की थी.” हालांकि शनिवार को जब समाचार एजेंसी एएफपी ने ओलांद से पूछा कि क्या भारत सरकार ने दसॉल्ट और रिलायंस डिफेंस पर साथ काम करने का दबाव डाला था तो उन्होंने कहा कि इस बारे में उन्हें कुछ नहीं पता, दसॉल्ट से पूछिए.

ओलांद के बयान के बाद फ्रांस ने बयान में कहा, “इस सौदे के लिए भारतीय औद्योगिक साझेदारों को चुनने में फ्रांस सरकार की कोई भूमिका नहीं थी।”  भारतीय अधिग्रहण प्रक्रिया के अनुसार, फ्रांस की कंपनी को पूरी छूट है कि वह जिस भी भारतीय साझेदार कंपनी को उपयुक्त समझे उसे चुने, फिर उस ऑफसेट परियोजना की मंजूरी के लिए भारत सरकार के पास भेजे, जिसे वह भारत में अपने स्थानीय साझेदारों के साथ अमल में लाना चाहते हैं ताकि वे इस समझौते की शर्ते पूरी कर सके.

जबकि दसॉल्ट एविएशन ने भी अपने बयान में कहा कि दसॉल्ट एविएशन ने भारत के रिलायंस ग्रुप के साथ साझीदारी करने का फैसला किया था. यह दसॉल्ट एविएशन का फैसला था. गौरतलब है कि फ्रांस से 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीदने की घोषणा 2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने की थी और 2016 में सौदे पर हस्ताक्षर हुआ था.

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