Raj thackeray: महाराष्ट्र की महायुति सरकार ने एक आदेश जारी कर मराठी और अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में कक्षा 1 से 5 तक के विद्यार्थियों के लिए हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में अनिवार्य कर दिया है। हालांकि, इस पर राजनीति तेज हो गई है। कांग्रेस ने सीएम देवेंद्र फडणवीस पर मराठी लोगों की छाती में छुरा घोंपने का आरोप लगाया है, जबकि राज ठाकरे ने इसका विरोध करते हुए कहा कि यह सरकार की चाल है कि हिंदी अब अनिवार्य नहीं रहेगी, बल्कि जो छात्र हिंदी पढ़ना चाहते हैं, उनके लिए पाठ्यक्रम उपलब्ध रहेगा। साथ ही स्कूलों को इसके खिलाफ खड़े होने को कहा गया है।
मंगलवार को राज्य सरकार की ओर से जारी संशोधित आदेश में कहा गया कि अनिवार्य होने के बजाय हिंदी ‘सामान्य रूप से’ तीसरी भाषा होगी, हालाँकि अगर किसी स्कूल में एक कक्षा में 20 स्टूडेंट हिंदी के अलावा किसी अन्य किसी भारतीय भाषा में पढ़ने की इच्छा व्यक्त करते हैं, तो उन्हें इससे बाहर रहने का ऑप्शन दिया गया है।
महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के नेता राज ठाकरे ने सरकार के इस आदेश का खुलकर विरोध किया है। उन्होंने कहा कि अप्रैल से महाराष्ट्र में शिक्षा विभाग का नया ड्रामा शुरू हो गया है। सबसे पहले यह आदेश दिया गया कि महाराष्ट्र राज्य माध्यमिक एवं उच्चतर माध्यमिक शिक्षा मंडल के पाठ्यक्रम से संबद्ध विद्यालयों में पहली कक्षा से तीन भाषाएं पढ़ाई जाएंगी। मराठी, अंग्रेजी और हिंदी अनिवार्य भाषाएं होंगी। जब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने इस आदेश का विरोध किया तो सरकार ने चुपचाप अपनी रणनीति बदल दी और कहा कि हिंदी अब अनिवार्य नहीं रहेगी, बल्कि यह पाठ्यक्रम उन छात्रों के लिए उपलब्ध होगा जो हिंदी पढ़ना चाहते हैं।
हिंदी पर हमला करते हुए राज ठाकरे ने कहा, “सवाल हिंदी भाषा को थोपने का नहीं है, क्योंकि यह “राष्ट्रीय भाषा” नहीं है। यह उत्तर भारत के कुछ राज्यों में बोली जाने वाली क्षेत्रीय भाषा है। जहां भी यह बोली जाती है, वहां कई स्थानीय भाषाएं हैं, जो अब हिंदी भाषा के दबाव के कारण विलुप्त होने के कगार पर हैं। अब वे अपनी स्थानीय भाषाओं को बचाना चाहते हैं या नहीं, यह उनका फैसला है, हमें इससे कोई लेना-देना नहीं है।”
महाराष्ट्र में हिंदी भाषा को थोपे जाने का विरोध करते हुए राज ठाकरे ने कहा कि अगर इस तरह से महाराष्ट्र में कोई भी भाषा थोपने की कोशिश की जाती है, तो हम इसके खिलाफ आवाज उठाते हैं और फ्यूचर में भी ऐसा करते रहेंगे। विरोध के बाद सरकार ने कहा कि पहली कक्षा से दो ही भाषाएं पढ़ाई जाएंगी। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या इसके लिए कोई लिखित आर्डर आया है? कागजी घोड़े दौड़ाने में माहिर सरकार इस पर भी कागज आगे बढ़ा सकती है।
हिंदी भाषा का विरोध करते हुए राज ठाकरे ने कहा, “हमारा प्रश्न यह है कि जब बच्चों को तीसरी भाषा नहीं पढ़ाई जानी है तो हिंदी भाषा की किताबें क्यों छापी जा रही हैं? हमें मालूम चला है कि इन किताबों की छपाई भी शुरू हो गई है। इसका आशय यह है कि सरकार चुपके से भाषा थोपने की योजना बना रही है। अगर आप स्कूल इस मामले में मदद करते हैं तो यह बहुत गंभीर मामला होगा।”
उन्होंने कहा कि बच्चों पर एक भाषा थोपने की सरकार की कोशिश को हर कीमत पर रोका जाना चाहिए। यह न केवल बच्चों के लिए बल्कि मराठी भाषा के लिए भी हानिकारक है। उनका कहना है कि सरकार जो कहती है उसे आंख मूंदकर मान लेना जरूरी नहीं है। बलि का बकरा मत बनो। और अगर सरकार जबरदस्ती करने की कोशिश करती है तो हम आपके साथ खड़े रहेंगे।
उन्होंने कहा कि बच्चों को एक क्षेत्रीय (राज्य) भाषा और एक वैश्विक (अंतरराष्ट्रीय) भाषा सिखा दी जाए तो काफी है। और बच्चों पर इतनी सारी भाषाएं थोपने की क्या जरूरत है? बच्चे जब बड़े हो जाएंगे तो अपनी जरूरत के हिसाब से भाषाएं सीख सकते हैं। लेकिन अभी से उन पर यह बोझ क्यों डाला जाए?
स्कूलों द्वारा इस मामले में सख्ती बरतने की बात करते हुए राज ठाकरे ने कहा कि अगर आप दृढ़ रहेंगे और सरकार की मंशा को विफल करेंगे तो हम चट्टान की तरह आपके साथ खड़े रहेंगे। हमने इस मामले में सरकार को पत्र भेजा है। हमने सरकार से लिखित पत्र के जरिए आश्वासन मांगा है कि हिंदी या कोई तीसरी भाषा अनिवार्य नहीं होगी।
उन्होंने कहा कि सरकार पत्र जारी करे या न करे, अगर आप इस मामले में सरकार का साथ देंगे तो हम इसे महाराष्ट्र-द्रोह मानेंगे। भाषा थोपने के मुद्दे पर पूरे राज्य में जबरदस्त असंतोष है।