India-Iran Historical Ties : इजरायल-ईरान के बीच चल रही जंग का असल भारत में भी देखने को मिल रहा है। देश में जहां एक पक्ष इजरायल का सपोर्ट कर रहा है तो वहीं एक पक्ष ईरान के साथ खड़ा नजर आ रहा है। इसको लेकर जमकर राजनीति भी हो रही है। इसमें कांग्रेस सबसे आगे जहां पार्टी की सबसे सीनियर नेता सोनिया गांधी विदेश नीति को लेकर मोदी सरकार को घेर रही हैं।

सोनिया गांधी ने सरकार की विदेश खासकर ईरान नीति को लेकर सवाल उठाए हैं। लेकिन इससे उलट सोनिया गांधी ये भूल गई कि साल 2005 में ईरान को इतिहास में पहली बार धोखा दिया था।

अमेरिका की वजह से ईरान के खिलाफ वोट!

दरअसल, इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, 2005 में भारत ने अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) में ईरान के परमाणु कार्यक्रम के खिलाफ वोट दिया था, जो उस समय अप्रत्याशित कदम था। उस समय मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार अमेरिका के साथ अपने असैन्य परमाणु समझौते को लेकर डील कर रही थी। ऐसे में माना जा रहा है कि भारत ने यह फैसला वाशिंगटन के दबाव में लिया।

लेकिन करीब दो दशक बाद, 2024 में भारत ने IAEA में ईरान के खिलाफ वोटिंग से खुद को अलग कर लिया। यानी 2005 के मुकाबले 2024 में वह ईरान के ज्यादा करीब नजर आया। कुल मिलाकर यह अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में भारत की संतुलन की नीति को दर्शाता है।

क्या अमेरिका के सामने झुक गई थी मनमोहन सरकार?

2005 में भारत ने 21 अन्य देशों के साथ मिलकर IAEA के प्रस्ताव का समर्थन किया था। प्रस्ताव में ईरान को परमाणु समझौते का उल्लंघन करते पाया गया था। रिपोर्टों के अनुसार, अमेरिका के साथ परमाणु समझौते के कारण भारत दबाव में था। वाशिंगटन ने भारत को स्पष्ट संदेश दिया था कि अगर वह ईरान के खिलाफ वोट नहीं करता है, तो यह समझौता ख़तरे में पड़ सकता है।

नतीजतन, भारत ने अपने हितों को प्राथमिकता देते हुए ईरान के खिलाफ़ वोट दिया, जिससे घरेलू राजनीति में खलबली मच गई। उस समय यूपीए सरकार का समर्थन कर रहे वामपंथी दलों ने इसे अमेरिका के आगे झुकना बताया था।

मोदी सरकार पर निशाना साधते हुए सोनिया गांधी का लेख

ईरान पर इजरायली हमलों को लेकर सोनिया गांधी ने हाल ही में एक लेख लिखा। उसमें भारत की विदेश नीति को आत्मघाती बताया और कहा कि बीजेपी सरकार ने अमेरिकी दबाव में ईरान के साथ रिश्तों को नुकसान पहुंचाया है। उन्होंने ईरान के साथ भारत के प्राचीन संबंधों का हवाला दिया है।

लेकिन शायद वो 2005 का फैसला भूल गई हैं। उस दौरान वो कांग्रेस की अध्यक्ष थीं। ईरान के खिलाफ वोट करने के वक्त उनका शांत रहना और अब चिंता करना विरोधाभासी लगता है। कुछ आलोचकों का मानना है कि यह लेख सिर्फ राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है, जिसका मकसद मुस्लिम वोट बैंक को लुभाना और भाजपा को घेरना है।

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