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OTT और सोशल मीडिया पर अश्लील कंटेंट को लेकर सुप्रीम कोर्ट सख्त, केंद्र सरकार को जारी किया नोटिस, कहा- ठोस कानून की जरूरत

OTT और सोशल मीडिया पर अश्लील कंटेंट पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है. इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक ठोस कानून बनाने की जरूरत बताई. सुप्रीम कोर्ट याचिका का परीक्षण करने को तैयार है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने एक नोटिस भी जारी कर दिया है. जस्टिस बी आर गवई ने कहा कि OTT और सोशल मीडिया पर कानून बनाने की जरूरत है.

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  • Last Updated: April 28, 2025 16:40:28 IST

Supreme Court Notice: OTT और सोशल मीडिया पर अश्लील कंटेंट पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताई है. इस मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक ठोस कानून बनाने की जरूरत बताई. सुप्रीम कोर्ट याचिका का परीक्षण करने को तैयार है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने एक नोटिस भी जारी कर दिया है. जस्टिस बी आर गवई ने कहा कि OTT और सोशल मीडिया पर कानून बनाने की जरूरत है. इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर थी. जिस पर सुनवाई करते हुए केन्द्र सरकार समेत सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को नोटिस जारी किया गया है.

सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार के अलावा नेटफ्लिक्स, उल्लू डिजिटल लिमिटेड, ऑल्ट बाला जी, ट्विटर, मेटा और गूगल जैसे को नोटिस दिया है.

क्या है याचिका में मांग?

पूर्व सूचना आयुक्त उदय माहुरकर समेत लोगों ने अश्लील कंटेंट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. इस याचिका में केंद्र सरकार से नेशनल कंटेंट कंट्रोल ऑथोरिटी (NCCO) का गठन करने की मांग की गई है. साथ ही याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म और ओटीटी प्लेटफॉर्म पर अश्लीलता को रोकने के लिए कानून बनना चाहिए.

केन्द्र सरकार ने क्या कहा है?

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सॉलिसीटर जनरल तुषार ने केन्द्र का पक्ष रखते हुए कहा कि ‘सरकार इस याचिका को अन्यथा में नहीं ले रही है. मेरी चिंता इस पर है कि बच्चे भी इससे प्रभावित हो रहे है. इन प्रोग्राम की भाषा न केवल अश्लील है, बल्कि विकृत है. दो पुरुष भी एक साथ बैठकर आज नहीं देख सकते है. सिर्फ यह शर्त लगाई गई कि 10 साल से ज्यादा उम्र वाले कंटेंट है. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि बच्चों की पहुंच इस कंटेंट तक नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश बीआर गवई ने कहा कि हमने भी देखा है कि बच्चो को व्यस्त करने के लिए माता-पिता बच्चो को फोन दे देते हैं. यह एक गंभीर मामला है. कार्यपालिका और न्यायपालिका को इस पर नजर रखनी चाहिए.

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