नई दिल्लीः केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच अधिकारों की जंग पर अब सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच सुनवाई करेगी. पिछली सुनवाई में दिल्ली सरकार की ओर से पेश पी. चिदंबरम ने कहा लेफ्टिनेंट गवर्नर (एलजी) अनिल बैजल संविधान और लोकतंत्र का मजाक बना रहे हैं. उन्होंने कहा, एलजी दिल्ली में असंवैधानिक तरीके से काम कर रहे हैं. कानून के मुताबिक एलजी के पास कोई शक्ति नहीं है, सारे अधिकार या तो मंत्रिमंडल के पास हैं या फिर राष्ट्रपति के पास. अगर किसी से राष्ट्रपति सहमत होते हैं तो ये राष्ट्रपति की राय होगी न कि एलजी की. दुर्भाग्यपूर्ण है कि वो फाइलों को राष्ट्रपति के पास न भेजकर खुद ही फैसले ले रहे हैं. वो कहते हैं कि वो ही फैसले लेंगे.
पी. चिदंबरम ने आगे कहा, कोई भी मामले का मतलब हर मामला नहीं है. किसी भी मुद्दे पर मूल मतभेद हो तो मामला तुरंत राष्ट्रपति के पास भेजा जाना चाहिए. अगर दिल्ली सरकार की कोई पॉलिसी असंवैधानिक है तो कोई दिक्कत नहीं लेकिन मामले को राष्ट्रपति को पास भेजा जाना चाहिए. उन्होंने कहा, IAS, IPS या डिप्टी सेकेट्री आदि तो केंद्र के अधीन हैं लेकिन दिल्ली सरकार के किस विभाग में वो काम करें, उसमें सरकार की राय मानी जानी चाहिए. 1994 के सर्कुलर के मुताबिक, एलजी, सीएम और मंत्रिमंडल मिलकर ज्वॉइंट कैडर के अफसरों की ट्रांसफर पोस्टिंग की जाए तो सरकार को कोई दिक्कत नहीं.
चिदंबरम ने कहा, एलजी तो दिल्ली सरकार के अधीनस्थ भी नियुक्तियों की भी फाइलें ले लेते हैं, जैसे दिल्ली फायर सर्विस एक्ट 2009 में दिल्ली सरकार ने बताया. वो नियुक्तियां कौन करेगा? दरअसल दिल्ली फायर सर्विस में 3000 से ऊपर पद खाली हैं. शिक्षा विभाग में 10,332 पद खाली हैं. यह सारे मामले एलजी के पास लंबित हैं. इससे पहले दिल्ली सरकार ने दलीलें पेश की थीं. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की कि संवैधानिक प्रावधानों को देखने से पहली नजर में लगता है कि दिल्ली में लेफ्टिनेंट गवर्नर (एलजी) को वरीयता दी गई है.
चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच के जज जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ ने टिप्पणी कि, संविधान के अनुच्छेद-239 एए के तहत एलजी दिल्ली सरकार की सलाह पर काम करेंगे लेकिन जब भी किसी मुद्दे पर मतभेद होगा तो मामला राष्ट्रपति को रेफर होगा. दिल्ली सरकार को संवैधानिक दायरे में ही काम करना होगा क्योंकि जमीन, पब्लिक ऑर्डर और पुलिस उसके कंट्रोल में नहीं हैं. उन्होंने कहा कि दिल्ली सरकार एग्जीक्यूटिव अधिकार का इस्तेमाल करती है लेकिन ये अधिकार अनुच्छेद-73 के दायरे में ही है. दिल्ली सरकार की एग्जीक्यूटिव पावर स्वतंत्र नहीं है. सुनवाई के दौरान दिल्ली सरकार की ओर से सीनियर एडवोकेट गोपाल सुब्रह्मण्यम ने कहा कि किसी मुद्दे पर मतभेद होने पर मामला राष्ट्रपति को रेफर करने का प्रावधान है, ये अपवाद में लिखा हुआ है. लेकिन यहां तो हर मामले में मतभेद है और अपवाद मुख्य प्रावधान पर हावी हो गया है. ये संविधान की भावना के खिलाफ है.
एलजी किसी फाइल को हमेशा के लिए रोककर नहीं रख सकते, उन्हें वाजिब समय में फाइलों का निपटारा करना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने ये टिप्पणी उस समय की जब दिल्ली सरकार की ओर से आरोप लगाया गया कि एलजी अपनी पावर से बाहर जाकर अधिकारों का इस्तेमाल कर रहे हैं. एलजी के पास एक के बाद एक कई कल्याणकारी योजनाओं की फाइलें भेजी गई हैं, लेकिन वह एक साल से ज्यादा समय से फाइलों को क्लीयर नहीं कर रहे हैं. मंत्रियों को काम करवाने के लिए अफसरों के पास भागना पड़ रहा है. जब भी कोई कार्यकारी आदेश चीफ सेक्रेटरी के पास भेजा जाता है तो उसका पालन नहीं होता क्योंकि बताया जाता है कि एलजी की मंजूरी नहीं मिली है. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फाइलों के निपटारे के लिए टाइम फ्रेम बनाया जा सकता है.
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