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नेपाल में शाही राजपरिवार नरसंहार की वो काली रात… प्रिंस ने राजा-रानी समेत 9 को मारा, फिर खुद को गोली मारी; इश्क या साजिश का रहस्य?

काठमांडू के नारायणहिति राजमहल में आयोजित एक पारिवारिक भोज के दौरान, क्राउन प्रिंस दीपेंद्र शाह ने अपने ही परिवार पर गोलियां बरसाईं. इस खौफनाक घटना में राजा बीरेंद्र बीर बिक्रम शाह, रानी ऐश्वर्या, और राजपरिवार के सात अन्य सदस्यों की जान चली गई. इसके बाद दीपेंद्र ने खुद को भी गोली मार ली.

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  • Last Updated: June 1, 2025 21:52:43 IST

Nepal Royal Massacre History: 1 जून 2001 की रात नेपाल के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है. काठमांडू के नारायणहिति राजमहल में आयोजित एक पारिवारिक भोज के दौरान, क्राउन प्रिंस दीपेंद्र शाह ने अपने ही परिवार पर गोलियां बरसाईं. इस खौफनाक घटना में राजा बीरेंद्र बीर बिक्रम शाह, रानी ऐश्वर्या, और राजपरिवार के सात अन्य सदस्यों की जान चली गई. इसके बाद दीपेंद्र ने खुद को भी गोली मार ली. जिससे यह हत्याकांड और रहस्यमयी हो गया. आज 24 साल बाद भी इस नरसंहार के पीछे की वजह इश्क या साजिश अनसुलझी बनी हुई है.

पारिवारिक भोज से शुरू हुई त्रासदी

नारायणहिति राजमहल में हर महीने की तरह उस शुक्रवार को भी एक नियमित पारिवारिक भोज का आयोजन हुआ था. इस डिनर में केवल राजपरिवार के सदस्य ही शामिल थे और कोई बाहरी व्यक्ति या सुरक्षा गार्ड मौजूद नहीं था. शाम करीब 6:45 बजे, प्रिंस दीपेंद्र पार्टी में पहुंचे और पास के कमरे में बिलियर्ड्स खेलने लगे. रिपोर्ट्स के मुताबिक वह नशे में थे. कुछ देर बाद वह सैन्य वर्दी में लौटे हाथों में जर्मन MP5K सबमशीन गन और कोल्ट M-16 राइफल लिए हुए. अचानक उन्होंने गैदरिंग हॉल में मौजूद अपने पिता राजा बीरेंद्र की ओर गोली चलाई. कुछ ही मिनटों में दीपेंद्र ने माता-पिता, भाई निराजन, बहन श्रुति समेत नौ लोगों को मौत के घाट उतार दिया. इसके बाद उन्होंने खुद को सिर में गोली मार ली.

राजा बीरेंद्र और महारानी ऐश्वर्या के साथ राजकुमारी श्रुति, युवराज दीपेंद्र और राजकुमार निरजन की तस्वीर।

कोमा में राजा, फिर ज्ञानेंद्र की ताजपोशी

गोली लगने के बाद दीपेंद्र कोमा में चले गए लेकिन उनकी सांसें चलती रहीं. हैरानी की बात यह थी कि इस हालत में उन्हें नेपाल का राजा घोषित किया गया. अस्पताल में तीन दिन कोमा में रहने के बाद 4 जून 2001 को उनकी मौत हो गई. इस बीच राजा बीरेंद्र के छोटे भाई ज्ञानेंद्र शाह जो उस रात काठमांडू से बाहर थे. सुरक्षित बच गए. नरसंहार के बाद, ज्ञानेंद्र को नेपाल का नया राजा बनाया गया. हालांकि उनकी ताजपोशी और उनके बेटे प्रिंस पारस की घटना के दौरान महल में मौजूदगी, बिना किसी चोट के सुरक्षित बचने ने कई सवाल खड़े किए.

पूरे यूनिफॉर्म में राजकुमार दीपेंद्र। ये तस्वीर 20 अप्रैल 2000 को काठमांडू में नारायणहिती रॉयल पैलेस में एक पदक वितरण कार्यक्रम की है। (तस्वीरः AFP)

इश्क की कहानी- दीपेंद्र और देवयानी का प्रेम

इस नरसंहार की सबसे चर्चित थ्योरी दीपेंद्र के प्रेम प्रसंग से जुड़ी है. बताया जाता है कि दीपेंद्र, नेपाल के प्रतिष्ठित राणा खानदान की देवयानी से प्यार करते थे. हालांकि रानी ऐश्वर्या ने इस रिश्ते का कड़ा विरोध किया. उन्होंने दीपेंद्र के लिए राजमाता रत्ना की बहन के खानदान से एक लड़की चुनी, जो शाही मानकों के अनुरूप थी. “राजघराने में अगर दुल्हन आएगी तो प्रतिष्ठित राजघराने से ही” रानी ऐश्वर्या ने साफ शब्दों में शादी से इनकार कर दिया. इससे दीपेंद्र नाराज और निराश थे. कुछ का मानना है कि इस पारिवारिक कलह और टूटे प्रेम ने उन्हें इस खूनी कदम तक पहुंचाया. नरसंहार के अगले ही दिन सदमे में डूबी देवयानी ने नेपाल छोड़ दिया और भारत चली आईं जहां 2007 में उनकी शादी अर्जुन सिंह के बेटे ऐश्वर्य सिंह से हुई.

साजिश की थ्योरीज का सच?

हालांकि आधिकारिक जांच में दीपेंद्र को हत्यारा माना गया लेकिन नेपाल की जनता और कई विशेषज्ञ इस पर यकीन नहीं करते. नेपाल के चीफ जस्टिस केशव प्रसाद उपाध्याय और संसद के स्पीकर तारानाथ राणाभट की कमेटी ने सैकड़ों गवाहों के बयानों के आधार पर दीपेंद्र को दोषी ठहराया. फिर भी कई साजिश सिद्धांत सामने आए.

विदेशी हाथ- कुछ लोगों जैसे नेपाल के पूर्व राजदूत चक्र प्रसाद बसटोला और माओवादी नेता पुष्प कमल दहल ने दावा किया कि इस हत्याकांड में भारतीय एजेंसी RAW और अमेरिकी CIA का हाथ हो सकता है. 2009 में पूर्व पैलेस मिलिट्री जनरल बिबेक शाह ने अपनी किताब ‘मैले देखेको दरबार’ में लिखा कि नई दिल्ली से माओवादियों को हथियार मिल रहे थे और हत्याकांड में भारत की भूमिका संभव है.

ज्ञानेंद्र और पारस पर शक- घटना के दौरान ज्ञानेंद्र की अनुपस्थिति और प्रिंस पारस का बिना खरोंच के बचना संदेहास्पद रहा. कुछ का मानना है कि यह गद्दी हथियाने की साजिश थी.

सुरक्षा गार्ड और डॉक्टरों पर सवाल- नारायणहिति महल में भारी संख्या में हथियारबंद गार्ड मौजूद थे फिर भी हत्याकांड को रोकने में नाकाम रहे. साथ ही दीपेंद्र की मौत से पहले पोस्टमॉर्टम न होना भी रहस्यमयी है.

नेपाल पर लंबा असर

इस नरसंहार ने नेपाल को झकझोर दिया. राजशाही की साख डगमगा गई और माओवादी आंदोलन को बल मिला. 2008 में नेपाल में राजशाही खत्म कर गणतंत्र की स्थापना हुई. आज 24 साल बाद भी यह सवाल अनुत्तरित है. क्या दीपेंद्र ने सच में यह कांड किया? क्या यह इश्क की सनक थी या गहरी साजिश का हिस्सा? सच शायद कभी सामने न आए.

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