Bahubali Anant Singh: मोकामा-बिहार का एक छोटा सा कस्बा जो गंगा के किनारे बसा है लेकिन इसकी मिट्टी में अपराध और सत्ता की कहानियां गहरे तक समाई हैं. इन कहानियों का सबसे चर्चित चेहरा है अनंत सिंह. जिन्हें लोग ‘छोटे सरकार’ के नाम से भी जानते हैं. अनंत सिंह की जिंदगी किसी फिल्मी स्क्रिप्ट से कम नहीं. जिसमें कत्ल, डकैती, अपहरण और रेप जैसे संगीन आरोपों की लंबी फेहरिस्त शामिल है.
अनंत सिंह का जन्म मोकामा के लदमा गांव में हुआ. चार भाइयों में सबसे छोटे अनंत की जिंदगी में अपराध का साया तब पड़ा. जब उनकी उम्र महज 9 साल थी. कहा जाता है कि उस वक्त उनके खिलाफ पहला आपराधिक मामला दर्ज हुआ. उनके बड़े भाई दिलीप सिंह जो बिहार की सियासत में एक बड़ा नाम थे. उन्होनें अनंत को अपराध और सत्ता के गलियारों में कदम रखने की राह दिखाई. अनंत ने इस राह पर चलते हुए कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. ‘मैंने हमेशा अपने समुदाय के लिए काम किया,’ अनंत सिंह ने एक बार कहा था. लेकिन उनके इस दावे के पीछे छिपी है एक ऐसी दुनिया. जहां कानून उनके रौब के सामने बौना नजर आता था.
मोकामा में अनंत सिंह का नाम सुनते ही लोग सहम जाते थे. उनके खिलाफ दर्ज मामलों में हत्या, फिरौती, डकैती और अपहरण जैसे गंभीर आरोप शामिल हैं. उनके घर से एके-47 राइफल और बम तक बरामद हो चुके हैं जो उनके खौफनाक साम्राज्य की गवाही देते हैं. अनंत का रसूख इतना था कि मोकामा में उनकी समानांतर सरकार चलती थी. स्थानीय लोग बताते हैं कि एक समय यहां बिना उनकी इजाजत के पत्ता भी नहीं हिलता था. ‘छोटे सरकार का नाम ही काफी है’ एक स्थानीय निवासी ने कभी कहा था. लेकिन यह नाम सिर्फ सत्ता का प्रतीक नहीं बल्कि खौफ का पर्याय भी बन गया.
अनंत सिंह की कहानी सिर्फ अपराध तक सीमित नहीं. 2005 में नीतीश कुमार ने उन्हें जनता दल यूनाइटेड का टिकट देकर मोकामा विधानसभा से चुनाव लड़वाया. इसके पीछे नीतीश का मकसद बिहार की सियासत में बाहुबलियों का साथ लेना था. अनंत ने इस मौके को दोनों हाथों से लपका और लगातार चार बार विधायक बने. लेकिन सियासत में आने के बाद भी उनके खिलाफ आपराधिक मामले कम नहीं हुए.
2007 में एक पत्रकार को बंधक बनाने और मारपीट करने का मामला हो या फिर हत्या और अपहरण के कई आरोप, अनंत हमेशा सुर्खियों में रहे. फिर भी उनका रौब और जनता में पकड़ कम नहीं हुई.
हाल के वर्षों में अनंत सिंह कई बार जेल की सलाखों के पीछे गए. 2019 से वे न्यायिक हिरासत में थे लेकिन 2024 में पैरोल पर बाहर आए. उनके पैरोल को लेकर भी सियासी हलचल तेज हुई. कुछ का मानना था कि यह उनकी सियासी ताकत का नमूना है तो कुछ इसे सिस्टम की नाकामी बताते हैं. हाल ही में एक गोलीबारी कांड में उनका नाम फिर से चर्चा में आया. जिसके बाद उनकी जमानत याचिका खारिज हो गई.
आज भी मोकामा की सियासत में अनंत सिंह का नाम गूंजता है. उनके समर्थक उन्हें भूमिहार समुदाय का रक्षक मानते हैं तो विरोधी उनके आपराधिक रिकॉर्ड को लेकर सवाल उठाते हैं. लेकिन एक बात तय है अनंत सिंह की कहानी खत्म होने का नाम नहीं ले रही.
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