मुंबई: इस विधेयक ने 1885 के भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1933 के भारतीय रेडियो टेलीग्राफ अधिनियम और 1950 के टेलीग्राफ अधिनियम को बदल दिया. दरअसल भारत ने सैटेलाइट इंटरनेट सेवाओं के लिए स्पेक्ट्रम आवंटन के एक लाइसेंसिंग दृष्टिकोण का प्रस्ताव दिया है जो कंपनियों को इसके लिए बोली लगाने से छूट देता है, ये एलन मस्क के उद्यम स्टारलिंक की जीत है, जिसने किसी भी नीलामी के खिलाफ कड़ी पैरवी की है.
स्टारलिंक को हो सकता है फायदा
दरअसल दूरसंचार कानून लागू होने के बाद सरकार के पास राष्ट्रीय सुरक्षा की रक्षा के लिए किसी देश या व्यक्ति की दूरसंचार सेवाओं से संबंधित उपकरणों को निलंबित या प्रतिबंधित करने का अधिकार मिलेगा. दरअसल आपात स्थिति में सरकारें मोबाइल नेटवर्क और सेवाओं पर प्रतिबंध भी लगा सकती हैं. बता दें कि सरकार का कहना है कि नए बिल से दूरसंचार बाजार में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी और दूरसंचार नेटवर्क की उपलब्धता और निरंतरता सुनिश्चित होगी.
हालांकि नए विधेयक में दूरसंचार स्पेक्ट्रम के प्रशासनिक आवंटन को रोकने के प्रावधान भी शामिल हैं, जिससे सेवाओं के रोलआउट में तेजी आएगी. बता दें कि दूरसंचार अधिनियम में कहा गया है कि टेलीकॉम सर्विस करने वाली कंपनियों को उपभोक्ताओं को सामान, सेवाएं और विज्ञापन संदेश भेजने से पहले उनकी सहमति लेनी होगी, और इसके अलावा एक ऐसा तंत्र बनाना जरूरी है. जिसके द्वारा उपभोक्ता शिकायत कर सकें. नए बिल में ई-कॉमर्स और ऑनलाइन मैसेजिंग जैसी ओटीटी सेवाओं को दूरसंचार सेवाओं की परिभाषा से बाहर कर दिया गया है.
सरकार से लाइसेंस के लिए आवेदन
दरअसल एलन मस्क की कंपनी स्टारलिंक सैटेलाइट इंटरनेट सेवाएं देती है, और इस कंपनी ने स्पेक्ट्रम नीलामी के बदले लाइसेंस देने के लिए आवेदन किया है. इसके अलावा कई अन्य विदेशी कंपनियों को भी समान लाइसेंसिंग प्रक्रियाओं की आवश्यकता होती है. ख़बरों के मुताबिक विदेशी कंपनियों का दावा है कि भारत में स्पेक्ट्रम नीलामी से लागत और निवेश बढ़ेगा. दरअसल इस क्लॉज को देश के सबसे बड़े टेलीकॉम ऑपरेटर रिलायंस जियो के लिए झटके के तौर पर देखा जा रहा है कि दरअसल रिलायंस जियो ने सरकार से अनुरोध किया था कि स्पेक्ट्रम आवंटन के लिए नीलामी ही एक सही तरीका है.
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