Waqf Amendment Act 2025: सुप्रीम कोर्ट में 16 अप्रैल 2025 को वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली 73 याचिकाओं पर सुनवाई हुई. चीफ जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस के. वी. विश्वनाथन की तीन सदस्यीय पीठ ने इस मामले में विभिन्न पक्षों के तर्क सुने. सुनवाई के दौरान CJI ने अचानक सभी को रोककर पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में वक्फ कानून के विरोध में हुई हिंसा का मुद्दा उठाया. उन्होंने कहा ‘एक बात बहुत परेशान करने वाली है और वो है हिंसा. मुद्दा न्यायालय के समक्ष है और हम निर्णय करेंगे.’
मुर्शिदाबाद में 8 अप्रैल 2025 से वक्फ (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू हुए. जो हिंसक झड़पों में बदल गए. इस हिंसा में कम से कम तीन लोगों की मौत हुई. कई घायल हुए और संपत्तियों को नुकसान पहुंचा. प्रदर्शनकारियों ने वाहनों में आग लगाई, पुलिस पर पथराव किया, और सड़कों को जाम कर दिया. पुलिस ने 221 लोगों को गिरफ्तार किया है. कलकत्ता हाई कोर्ट ने हिंसा को नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय बलों की तैनाती का आदेश दिया और केंद्र व राज्य सरकार से विस्तृत रिपोर्ट मांगी.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हिंसा को ‘पूर्व नियोजित’ करार देते हुए बीजेपी, बीएसएफ, और केंद्रीय एजेंसियों पर सीमा पार से अवैध घुसपैठ को बढ़ावा देने का आरोप लगाया. दूसरी ओर बीजेपी ने ममता सरकार पर ‘जिहादी तत्वों’ को संरक्षण देने और हिंदुओं पर हमले की अनुमति देने का आरोप लगाया.
CJI संजीव खन्ना ने हिंसा पर चिंता जताते हुए स्पष्ट किया कि मामला न्यायालय के पास है और इसका फैसला कोर्ट करेगा. उन्होंने हिंसा को दबाव की रणनीति के रूप में इस्तेमाल करने की प्रवृत्ति पर भी आपत्ति जताई. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने भी कहा कि हिंसा का इस्तेमाल दबाव बनाने के लिए नहीं होना चाहिए. CJI ने कहा कि सभी याचिकाकर्ताओं को सुनना संभव नहीं इसलिए चयनित वकील बिना दोहराव के तर्क देंगे. कोर्ट ने दो सवाल उठाए. क्या मामला सुप्रीम कोर्ट में सुना जाए या हाई कोर्ट को सौंपा जाए? याचिकाकर्ता संक्षेप में अपनी मांग और तर्क स्पष्ट करें. कोर्ट ने केंद्र से दो सप्ताह में जवाब मांगा और आदेश सुरक्षित रखा.
अदालत ने कहा 14 वीं से 16 वीं शताब्दी के बीच बनी अधिकतर मस्जिदों के पास बिक्री विलेख नहीं होंगे. इनका रजिस्ट्रेशन कैसे होगा?
‘वक्फ बाय यूजर’ उस संपति को कहा जाता है जिसे लंबे समय तक धार्मिक या परोपकारी उध्देश्यों के लिए लाए जानें के कारण उसे वक्फ माना जाता हैं. भले ही उसके पास कोई दस्तावेज न हो. हालांकि नए कानून में एक छूट दी गई है. यह उन संपतियों पर लागू नहीं होगा. जो विवादित हैं और सरकारी भूमि पर हैं.
अदालत ने कहा, ‘ आपने अभी तक सवाल का जबाब नहीं दिया. ‘वक्फ बाय यूजर’ घोषित होगा या नहीं? यह तो पहले से स्थापित चीज को उलटना होगा. वक्फ बाय यूजर संपत्तियों का रजिस्ट्रेशन कैसे होगा? आप ऐसा नहीं कह सकते कि ऐसा कोई मामला नहीं होगा.’
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसी मस्जिदों से पंजीकृत डीड की मांग करना व्यावहारिक नहीं है क्योंकि वे ‘उपयोग द्वारा वक्फ’ संपत्तियां होती हैं. अदालत ने वक्फ बोर्डों और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों को शामिल करने के प्रावधान पर भी सवाल उठाया और केंद्र से पूछा कि क्या वह हिंदू धार्मिक ट्रस्टों में मुस्लिमों की भागीदारी की अनुमति देगा? पीठ ने यह भी टिप्पणी की कि वक्फ संशोधन अधिनियम की वह धारा जिसमें कहा गया है कि जब तक कलेक्टर यह तय नहीं कर लेता कि कोई ज़मीन सरकारी है या नहीं तब तक उसे वक्फ नहीं माना जाएगा. उसे लागू नहीं माना जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से साफ साफ पूछा कि क्या वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद के सभी सदस्य मुस्लिम होंगे, सिवाय उन अधिकारियों के जो पद के अनुसार (ex-officio) सदस्य हैं. क्या आप अब मुसलमानों को भी हिंदू बंदोबस्ती बोर्ड में शामिल करेंगे?
शीर्ष अदालत अब इस मामले की अगली सुनवाई गुरुवार को करेगी. अभी के लिए सॉलिसिटर जनरल और राज्यों के वकीलों की आपत्तियों को देखते हुए कोर्ट ने कोई आदेश जारी नहीं किया. अदालत ‘उपयोग द्वारा वक्फ’ संपत्तियों के संबंध में एक अंतरिम आदेश देने की इच्छुक थी. लेकिन तुषार मेहता की दलीलों के चलते यह मामला गुरुवार तक के लिए टाल दिया गया.
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