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पारसी धर्म में आसमान को क्यों सौंपा जाता है शव, अब बदल गई परंपरा

नई दिल्ली: टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा का बुधवार की देर रात मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में निधन हो गया, उनका अंतिम संस्कार मुबई में हुआ, लेकिन इससे पहले उनके लिए करीब 45 मिनट तक प्रार्थना की गई. रतन टाटा पारसी धर्म से हैं.

Ratan tata
inkhbar News
  • Last Updated: October 10, 2024 18:46:01 IST

नई दिल्ली: टाटा ग्रुप के पूर्व चेयरमैन रतन टाटा का बुधवार की देर रात मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में निधन हो गया, उनका अंतिम संस्कार मुबई में हुआ, लेकिन इससे पहले उनके लिए करीब 45 मिनट तक प्रार्थना की गई. रतन टाटा पारसी धर्म से थे.

आपको बता दें कि पारसी रीति-रिवाज में अंतिम संस्कार की परंपरा अलग है, मुस्लिम और ईसाई समुदाय में शव को दफन कर दिया जाता है, जबकि हिंदू धर्म में शव को अग्नि या जल को सौंपा जाता है, लेकिन पारसी समुदाय में शव को आसमान को सौंपा जाता है जिसे गिद्ध, चील, कौए आदि खा जाते हैं.

क्यों आसमान को शव सौंप देते हैं पारसी?

हिंदू धर्म में शव को जलाया या जल में प्रवाहित कर दिया जाता है. वहीं मुस्लिम-ईसाई धर्म में शव को धरती में दफन कर दिया जाता है, लेकिन पारसी धर्म में बिल्कुल अलग होता है, पारसी लोग अग्नि, जल और धरती को पवित्र मानते हैं, लेकिन शव को अपवित्र. पारसी समुदाय का कहना है कि शव को दफने, जलाने और दफनाने से धरती, अग्नि और जल अपवित्र हो जाती है, इससे ईश्वर की संरचना भी प्रदूषित होती है इसलिए आसमान को सौंप दिया जाता है, इसके लिए पारसी समुदाय में एक खास स्थान का चयन किया गया है.

क्या है टावर ऑफ साइलेंस?

दरअसल पारसी समुदाय में अंतिम संस्कार के लिए एक खास जगह का चयन किया गया है जिसे टावर ऑफ साइलेंस कहा जाता है जो गोलाकार कढ़ाईनुमा कूप की तरह होता है. इसमें पारसी लोग सूरज की दिशा में शव को ले जाकर छोड़ देते हैं जिसे बाद में गिद्ध, चील, कौए आदि खा जाते हैं.

Ratan funeral: In Parsi religion, the dead bodies are handed over to the sky, tradition is change

अब क्यों बदली परंपरा?

दरअसल टावर ऑफ साइलेंस में रखे शव को ज्यादातर गिद्ध ही खाते हैं, लेकिन पिछले कुछ सालों में गिद्धों की कमी हुई है, अब ज्यादा गिद्ध नहीं हैं. इसी बात को लेकर पारसी समुदाय में चिंता का सबब है. अब पारसी समुदाय के लोगों को अंतिम संस्कार करने में दिक्कत आ रही है क्योंकि गिद्ध अब शव को खाने के लिए नहीं पहुंचते है जिसके कारण शव सड़ जाता है और दूर-दूर तक बदबू फैल जाती है जिससे बीमारी फैलने का डर रहता है.

वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि इससे संक्रमण फैल सकता है. इसस स्थिति में यह मामला सुप्रीम कोर्ट भी पहुंचा, अब पारसी समुदाय के कई लोग विद्युत शवदाहगृह में अंतिम संस्कार करा रहे हैं.

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