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राजस्थान और बंगाल में चुनाव आयोग ने कैसा ईवीएम भेजा कि भाजपा की दुर्गति हो गई !

यूपी चुनावों के बाद चर्चाओं में आई ईवीएम की गड़बड़ी की चर्चा राजस्थान और पश्चिम बंगाल के नतीजों के बाद नहीं हो रही है. राजस्थान की दो लोकसभा और एक विधानसभा सीट अलवर, अजमेर और मंडलगढ़ सीट पर बीजेपी को करारी हार दी है. उपचुनावों के नतीजे के साथ ही बीजेपी विरोधी राजनीतिक पार्टियों की ईवीएम पर चकल्लस खत्म हो गई है. यूपी चुनावों के बाद हर चुनाव नतीजे में ईवीएम पर अपनी हार का ठीकरा फोड़कर लोकतंत्र को खतरे में बताने वाले विपक्षी दल क्या इन उपचुनाव नतीजों से ईवीएम को लेकर संतुष्ट हो गए हैं. क्या वे गलतफहमी में हैं कि अब सब ठीक हो गया. कोई ईवीएम टैंपरिंग नहीं होती या उन्हें जानबूझकर चुप होने का मौका दिया गया है. पढ़िए एक विश्लेषण

Rajasthan Election Result EVM Tempring Congress
inkhbar News
  • Last Updated: February 1, 2018 21:19:36 IST

राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद लगातार फॉर्म में नजर आ रहे हैं. राजस्थान और पश्चिम बंगाल में कांग्रेस की जीत को राहुल गांधी के विनिंग प्लान का नतीजा बताया जा रहा है. राजस्थान की दो लोकसभा और एक विधानसभा सीट (अलवर, अजमेर और मंडलगढ़) पर हुए उपचुनाव में बीजेपी का सूपड़ा साफ हो गया है. कांग्रेस ने क्लीन स्वीप करते हुए तीनों सीटों पर कब्जा जमाया है. लेकिन एक बात इन उपचुनाव के नतीजों में दिखाई नहीं दे रही. वह है ईवीएम पर चकल्लस. 2017 में यूपी चुनावों के नतीजे आने के बाद चर्चाओं में आई ईवीएम पर चर्चा इन उपचुनाव के नतीजों के बाद अभी तक राजनीतिक हलकों में शुरू नहीं हुई है. ईवीएम पर चर्चा न होने के कारण माना जा सकता है कि सत्ताधारी पार्टी बीजेपी की हार के साथ ईवीएम की वह दिक्कत भी दूर हो जाती है जिसने पिछले साल राजनीतिक हलकों में गर्माहट पैदा कर दी थी.

सिर्फ राजनीतिक पार्टियां ही नहीं ईवीएम आम जनता के बीच भी संशय की नजर से देखी जाने लगी थी. इतना ही नहीं ईवीएम के खिलाफ, सपा, बसपा, टीएमसी, आम आदमी पार्टी सहित 16 राजनीतिक दल इसमें गड़बड़ी की शिकायत को लेकर चुनाव आयोग पहुंचे थे. हालांकि सपा और बसपा ने सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की थी. इन दोनों राज्यों में चुनावी नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आने के बाद किसी भी पार्टी द्वारा ईवीएम पर सवाल नहीं उठाया जाना क्या माना जाए? क्या ईवीएम की दिक्कत हमेशा के लिए दूर हो गई या फिर चुनाव आयोग ने इन राज्यों में उप चुनाव के लिए टेंपरिंग प्रूफ ईवीएम मशीनें भेजी हैं.

सोशल मीडिया पर इस मामले में एक तबका कह रहा है कि शायद चुनाव आयोग इसी साल कई राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले कोई बखेड़ा खड़ा नहीं करना चाहता. इसीलिए इन चुनावों के नतीजे फेयर तरीके से आए हैं. लोगों की इस बात में सच्चाई की कितनी संभावना है इसके बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता. लेकिन इतना जरूर है कि जिस तरह से यूपी चुनाव के नतीजे बीजेपी के पक्ष में आने के बाद बसपा प्रमुख मायावती ने इसे ईवीएम की कृपा बताया था और ईवीएम बैन करने के लिए आंदोलन शुरू करने का ऐलान किया था वह समय के साथ खो सा गया. मायावती के अलावा अखिलेश यादव और कांग्रेस ने भी ईवीएम में गड़बड़ी की बात कही थी. जिसे चुनाव आयोग ने सिरे से खारिज कर दिया था.

ईवीएम को लेकर आम आदमी पार्टी तो इतना सजग दिखाई पड़ी कि उसने दिल्ली विधानसभा में ईवीएम हैकिंग का लाइव डेमो भी दिखाया. समय बीतने के साथ आम आदमी पार्टी भी इस मुद्दे पर सजग नहीं दिखाई दी. आम आदमी पार्टी के साथ ईवीएम के खिलाफ लड़ाई में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी साथ निभाती नजर आई थीं, लेकिन इन उपचुनावों के बाद उन्होंने भी ईवीएम पर कोई टिप्पणी न कर ईवीएम की पवित्रता की मूक सहमति दे दी है.

यूपी चुनाव के बाद मायावती ने अपनी पार्टी की हार स्वीकार करने के बजाय ईवीएम पर जो आरोप लगाकर हंगामा खड़ा किया था उसको बल मिला मध्य प्रदेश में. मध्य प्रदेश में भिंड जिले की अटेर विधानसभा सीट पर उपचुनाव के दौरान ईवीएम मशीनों का पत्रकारों के सामने परीक्षण किया जा रहा था. लेकिन यहां ईवीएम मशीन में बीजेपी के अलावा अन्य पार्टियों का बटन दबाया गया तो उसकी पर्ची कमल के निशान वाली निकली. इसे पत्रकारों ने अपने मोबाइल कैमरों में कैद कर लिया था जिसपर भी चुनाव आयोग अडिग रहा. हालांकि बाद में खबरें आईं कि जिन ईवीएम मशीनों से अलग-अलग बटन से कमल खिल रहा था वे मशीनें उत्तर प्रदेश के कानपुर की गोविंदनगर सीट से आई थी. बाद में यह दावा भी एक नियम के हवाले से खारिज कर दिया गया था कि चुनाव के 45 दिन के भीतर ईवीएम मशीन किसी दूसरी जगह मतदान के लिए नहीं भेजी जा सकती.

(लेख में व्यक्त विचार लेखक के हैं. इससे इनखबर की सहमति या असहमति नहीं है.)

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