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11 मार्च को नतीजे नहीं, समीकरणों से तय हो सकता इस बार पंजाब का सीएम ?

चंडीगढ़. पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने आज लिस्ट जारी कर दी है. आम आदमी पार्टी की तैयारी भी जोरो से है. कांग्रेस भी सिद्धू के आने का इंतजार कर रही है. लेकिन इन सब के बीच अभी भी एक चीज तय नहीं हो पाई है कि आखिर पलड़ा किस पार्टी का भारी है.

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  • Last Updated: January 12, 2017 07:49:17 IST
चंडीगढ़. पंजाब विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने आज लिस्ट जारी कर दी है. आम आदमी पार्टी की तैयारी भी जोरो से है. कांग्रेस भी सिद्धू के आने का इंतजार कर रही है. लेकिन इन सब के बीच अभी भी एक चीज तय नहीं हो पाई है कि आखिर पलड़ा किस पार्टी का भारी है.
पूरे राज्य में इस लेकर गली-मुहल्ले तक में चर्चा हो रही है कि 11 मार्च को पंजाब का ‘सरदार’ कौन होगा. आम आदमी पार्टी की रैलियों में जिस तरह से भीड़ आ रही है उससे राजनीतिक विश्लेषकों के लिए अनुमान लगाना काफी मुश्किल हो गया है.
दरअसल ऐसा पहला मौका है जब पंजाब में विधानसभा चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला देखने को मिल रहा है.हालांकि अभी यह भी कहना मुश्किल है कि आम आदमी पार्टी की रैलियों में जो भीड़ आ रही है वह वोट में कितना बदलेगा.
पंजाब में अभी तक मुकाबला अकाली-बीजेपी गठबंधन और कांग्रेस के बीच होता आया है और इस बात को भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता है कि पंजाब में बीजेपी अब अकालियों की छाया से मुक्त होना चाहती है और पिछले कई सालों से उसने अपनी ताकत बढ़ाने का काम किया है.  विजय सांपला जैसे नेताओं का उभरना सबसे बड़ा प्रमाण है.
बात करें त्रिकोणीय मुकाबले की तो क्या इसका परिणाम यह होगा कि आम आदमी पार्टी की बढ़ती ताकत से इस बार किसी को भी पूर्ण बहुमत नहीं मिलेगा. हालांकि पंजाब में आम आदमी पार्टी के अंदर भी खींचतान पिछले एक साल जारी है.
टिकट बांटने में भ्रष्टाचार, कई नेताओं के गलत काम, किसी बड़े चेहरे का न होना, पार्टी के अंदर कई बाहरियों को दखलंदाजी जैसे मुद्दे भी आम आदमी पार्टी के अंदर उठ रहे हैं और इसका नुकसान भी उठाना पड़ सकता है.
पिछले 6 महीने में आम आदमी पार्टी को कई नेता छोड़कर भी गए हैं. जिनमें कुछ बड़े और जिला स्तर के भी हैं. लेकिन पार्टी के बड़े नेताओं जैसे केजरीवाल, संजय सिंह, दिलीप पाठक को इस बात का पूरा विश्वास है कि वो दिल्ली की तरह ही पंजाब में भी करिश्मा करने जा रहे हैं. दिल्ली में तो पार्टी ने 70 में से 67 सीटें जीत ली थीं.
बात करें अकाली-बीजेपी गठबंधन सरकार की तो दोनों ही मिलकर यहां पर 2007 से शासन कर रहे हैं. जाहिर उनके खिलाफ इस
बार सत्ता विरोधी लहर भी है. लेकिन गठबंधन को विश्वास है कि वो तीसरी बार सरकार बनाने मे कामयाब हो जाएंगे.
सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार, राज्य की बिगड़ते आर्थिक हालात, बादल परिवार के खिलाफ आरोप जैसे मुद्दे भी इस बार चर्चा में हैं. वहीं कांग्रेस के वरिष्ट नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी लगता है कि कांग्रेस को इस बार अच्छी-खासी बढ़त मिल रही है.
लेकिन कांग्रेस के पास भी अपनी कमजोरियां उभर रही हैं. चुनाव से 6 महीने पहले ही अकाली दल, बीजेपी और आम आदमी पार्टी से नाराज नेताओं को कांग्रेस ने अपने यहां खूब आवभगत कर डाली. अब टिकट बांटने में खूब मुंह फुलौवल हो रही है और यह हालात धीरे-धीरे पार्टी के अंदर गंभीर होते जा रहे हैं.
और यही वजह है कि कैप्टन अमरिंदर सिंह ने जहां दावा कर रहे थे कि कांग्रेस अपने प्रत्याशियों को जल्दी टिकट बांट देगी लेकिन अभी तक वह लिस्ट भी फाइनल नहीं कर पा रही है. कुल मिलाकर पंजाब का चुनाव इस बार बेहद कन्फूजन से भरा है. जहां विश्लेषकों से लेकर, वोटर और पार्टियों कुछ भी तय कर पाने की स्थिति में नही हैं.
हो सकता है इस बार पंजाब में जनता नहीं चुनाव के बाद बनने वाले समीकरण तय करें कि कौन होगा पंजाब का सीएम ?
 

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