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उपराष्ट्रपति चुनाव: नतीजों को लेकर चिंता नहीं, अल्वा बोलीं- ममता के पास सोचने के लिए पर्याप्त समय

नई दिल्ली, राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू की ऐतिहासिक जीत के बाद अब विपक्ष को उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर डर सता रहा है. ऐसे में, उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की संयुक्त उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा ने गैर-भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दलों में लगातार बढ़ रहे मतभेद और संख्या बल उनके पक्ष में नहीं होने के बीच […]

margaret alva
inkhbar News
  • Last Updated: July 24, 2022 18:13:12 IST

नई दिल्ली, राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू की ऐतिहासिक जीत के बाद अब विपक्ष को उपराष्ट्रपति चुनाव को लेकर डर सता रहा है. ऐसे में, उपराष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष की संयुक्त उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा ने गैर-भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दलों में लगातार बढ़ रहे मतभेद और संख्या बल उनके पक्ष में नहीं होने के बीच कहा कि वह चुनावी नतीजों को लेकर बिल्कुल भी परेशान नहीं हैं, क्योंकि वोटों का गणित तो कभी भी बदल सकता है. उन्होंने कहा कि हम यह कहकर पीछे नहीं हट सकते कि हमारे पास तो पर्याप्त संख्या ही नहीं है, इसलिए हम मैदान में ही नहीं उतरेंगे. जहां तक ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के मतदान से दूर रहने की बात है तो उनके पास फिर से सोचने के लिए पर्याप्त समय है.

मार्गरेट अल्वा ने क्या कहा ?

एक इंटरव्यू के दौरान उपराष्ट्रपति चुनाव पर मार्गरेट अल्वा ने कहा, ‘जब मैं आसपास देखती हूं तो काफी डर लगता है, आप जो चाहते हैं, उसे आप खा नहीं सकते. आप जो चाहते हैं, वह आप पहन नहीं सकते. आप जो चाहते हैं, वह कह नहीं सकते, यहाँ तक कि आप उन लोगों से मिल भी नहीं सकते, जिनसे आप मिलना चाहते हैं, ये कैसा समय आ गया है?’ बता दें मार्गरेट अल्वा सोमवार को संसद भवन के सेंट्रल हॉल में विभिन्न दलों के सांसदों से मुलाकात कर उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए अपना अभियान शुरू करेंगी.

हारी हुई लड़ाई लड़ने पर क्या बोलीं मार्गरेट अल्वा

निर्वाचक मंडल का गणित स्पष्ट रूप से विपक्ष के खिलाफ है ऐसे में हारी हुई लड़ाई लड़ने के सवाल पर अल्वा ने कहा, चूंकि, संख्या बल हमारे पक्ष में नहीं है, इसलिए हमें मैदान में नहीं उतरना चाहिए? मेरा मानना है कि एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में, जीत हो या हार, आपको चुनौती स्वीकार करनी होगी और उन सांसदों के सामने अपनी बात रखनी होगी, जो अब निर्वाचक मंडल का हिस्सा हैं, बेशक हमारा सरकार से अलग नजरिया है और जरूरत उन लोगों की है, जो चुनौती को स्वीकार करने के लिए एक साझा मंच पर हैं, जीत हो या हार चुनौती स्वीकार करना ज़रूरी है.

 

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