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हाथ से उखाड़ते हैं गुप्तांगों के बाल, नहीं पहनते एक भी कपड़ा, जैन साधुओं की दर्दनाक प्रक्रिया जान रूह कांप जाएगी

आज हम आपको जैन साधुओं के जीवन के बारे में ऐसी बातें बताएंगे, जिन्हें जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे। जैन परिवार से दूर रहकर सभी सुख-सुविधाओं का त्याग करते हैं और कठोर तपस्या के बाद साधु बनते हैं।

Jain Monk Kesh Lochan
inkhbar News
  • Last Updated: January 18, 2025 11:31:59 IST

नई दिल्ली। भारत में कई समुदाय एक साथ रहते हैं। हर समुदाय की अपनी- अपनी परंपराएं हैं। भारत में एक जैन समुदाय भी है, जिसमें कई ऐसी प्रथाएं हैं, जिनके बारे में बहुत से लोगों को जानकारी नहीं है। आज हम आपको जैन साधुओं के जीवन के बारे में ऐसी बातें बताएंगे, जिन्हें जानकर आप भी हैरान रह जाएंगे। जैन लोग परिवार से दूर रहने, सभी सुख-सुविधाओं का त्याग करने और कठोर तपस्या के बाद साधु बनते हैं। दिगंबर समुदाय के साधु शरीर पर एक भी वस्त्र नहीं पहनते हैं।

इसलिए नहीं पहनते कपड़े

जैन धर्म के अनुसार कपड़ा एक भौतिक सुख हैं और उन्हें खरीदने के लिए पैसे खर्च करने पड़ते हैं। साथ ही उन्हें साफ रखने में समय और पैसा लगता है, जो सांसारिक जीवन से जुड़ा है। इसीलिए जैन साधु वस्त्र का त्याग करते हैं। जैन साधु सभी प्रकार की सम्पत्ति से मुक्त रहते हैं। जैन साधु अपने गुप्तांगों को ढकने के लिए केवल मोर पंख से बनी एक पेंची का इस्तेमाल करते हैं। कुछ जैन साधु मोर पंख या पूंछ का उपयोग भी नहीं करते हैं। यह धर्म अहिंसा, अहंकार और सांसारिक चीजों के पूर्ण त्याग पर आधारित है।

दर्दनाक है ये प्रक्रिया 

इतना ही नहीं, जैन साधुओं के बाल काटने की प्रक्रिया भी बेहद दर्दनाक होती है। केश लोचन के लिए वे कैंची, उस्तरा या ब्लेड जैसे किसी उपकरण का उपयोग नहीं करते हैं। वे अपने सिर, दाढ़ी, मूंछ और शरीर के अन्य हिस्सों के बाल हाथ से ही उखाड़ते हैं। केश लोचन दिगंबर जैन साधुओं और महिला साध्वियों के लिए अनिवार्य माना जाता है। जैन साधुओं और आर्यिकाओं को यह प्रक्रिया साल में चार बार करनी होती है। इस दौरान उन्हें असहनीय दर्द सहन करना पड़ता है। कई बार बाल उखाड़ते समय खून भी निकल आता है, फिर भी वे इस कठिन परीक्षा से पीछे नहीं हटते। इसके अलावा, ये साधु ठंड में बिना कपड़ों के जमीन पर सोते हैं।

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