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किसानों के लिए फिर से खुशियां लेकर आया बैसाखी का त्योहार, जानिए क्यों है ये इतना खास

भारत में अनेक धर्म हैं और सभी धर्मों के अलग-अलग त्योहार हैं और यह सभी त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. बैसाखी का यह त्योहार हर साल 13 या 14 अप्रेल को मनाया जाता है. नवरात्रों के बाद चैत्र माह खत्म होते ही फसलों और उमंगों का त्यौहार बैसाखी आ गया है.

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  • Last Updated: April 13, 2017 03:33:56 IST
नई दिल्ली: भारत में अनेक धर्म हैं और सभी धर्मों के अलग-अलग त्योहार हैं और यह सभी त्योहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. बैसाखी का यह त्योहार हर साल 13 या 14 अप्रेल को मनाया जाता है. नवरात्रों के बाद चैत्र माह खत्म होते ही फसलों और उमंगों का त्यौहार बैसाखी आ गया है.
 
भारतीय संस्कृति के अनुरुप बैसाखी का त्योहार ग्रह- नक्षत्रों, वातावरण, ऐतिहासिक महत्त्व और कृषि से जुड़ा हुआ है क्योंकि इस वक्त गेहूं की फसल पक जाती है और फिर इसकी कटाई होनी शुरू होने जा रही है.
 
पंजाब में इस त्योहार का बहुत खास महत्व है. यह त्योहार किसानों के लिए एक नई उम्मीद लेकर आता है. इस दिन किसान सुबह उठकर नहाते हैं और फिर मंदिरों और गुरुद्वारे में जाते हैं. ऐसा कहा जाता है कि इस दिन 13 अप्रेल 1699 को सिखों के दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी. इस वजह से यह त्योहार सामूहिक जन्मदिवस के रूप में भी मनाया जाता है.
 
इसके अलावा यह दिन व्पापारियों के लिए भी काफी खास है. इस दिन देवी दुर्गा और भगवान शंकर की पूजा की जाती है. इस दिन व्यापारी नये कपड़ेृ पहन कर अपने नए कामों की शुरुआत करते हैं.
 
इसलिए इतना खास है यह त्योहार-
 
बैसाखी का त्योहार समृद्धि और खुशियों का त्योहार भी माना जाता है. यह इसलिए मनाया जाता है क्योंकि पहली बैसाख को पंजाब में नए वर्ष के शुरुआत फसलों के पकने और कटने की किसानों की खुशियां हैं. इस समय खतों में राबी की फसल लहलहाती है और किसान काफी खुश रहते हैं. इस त्योहार को पंजाब के साथ-साथ पूरे उत्तर भारत में भी मनाया जाता है. केरल में इस त्योहार को विशु कहते हैं. इसी तरह बंगाल में नब वर्ष, असम में रोंगाली बिहू, वहीं तमिल में  पुथंडू और बिहार में इसे वैषाख कहा जाता है.
 

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