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केरल के इस मंदिर में पैसे नहीं बल्कि दान में दिए जाते हैं हाथी

मंदिरों और देवी-देवताओं का भारतीय संस्कृति में एक अहम महत्व है, भक्त प्रभु को खुश करने के लिए तरह-तरह की चीजें अर्पित करते हैं. अक्सर देखा गया है कि कभी वह भोग तो कभी धन आदि भगवान को अर्पित करते हैं, लेकिन देश में एक ऐसा अनोखा मंदिर भी है जहां हाथ को दान किया जाता है.

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  • Last Updated: May 4, 2017 06:01:00 IST
नई दिल्ली : मंदिरों और देवी-देवताओं का भारतीय संस्कृति में एक अहम महत्व है, भक्त प्रभु को खुश करने के लिए तरह-तरह की चीजें अर्पित करते हैं. अक्सर देखा गया है कि कभी वह भोग तो कभी धन आदि भगवान को अर्पित करते हैं, लेकिन देश में एक ऐसा अनोखा मंदिर भी है जहां हाथ को दान किया जाता है.
 
आपको इस मंदिर में दर्शन करने के लिए एक खास निर्धारित ड्रेस कोड पहनना पड़ेगा, आपने अगर इस ड्रेस को नहीं पहना तो आपके लिए मंदिर परिसर में प्रवेश वर्जित होगा. पुरुषों के लिए मंडु( एक तरह की धोती) पहनना जरूरी है लेकिन वह ऊपर किसी भी वस्त्र को नहीं पहन सकते हैं. चेस्ट का ढ़कने के लिए वेश्‍थी (कपड़े का एक छोटा सा टुकड़ा) डाल सकते हैं. महिलाओं को मंदिर परिसर में जीन्स, ट्राउजर जैसा कुछ भी पहनना निषेध है. महिलाएं साड़ी और लड़कियां लॉन्ग स्कर्ट के साथ ब्लाउज पहनना जरूरी है. बता दें की वर्तमान में महिलाओं को सलवार कमीज पहनने पर भी छूट दे दी गई है.
 
आप आपके जहन में ये सवाल आ रहा होगा कि आखिर ये खास गुरुवायुर मंदिर देश के किस राज्य में है तो बता दें की ये मंदिर केरल के त्रिशूर जिले में स्थित है. यहां भगवान श्रीकृष्‍ण के बालरूप भगवान गुरुवायुरप्पन की पूजा की जाती है. ये एक महत्वपूर्ण मंदिर है जो काफी सालों पुराना है, ऐसा माना गया है कि इस युग के प्रारम्‍भ में बृहस्पति को भगवान कृष्‍ण की मूर्ति तैरती हुई थी. मानव की सहायता के लिए उन्होंने और वायु देव ने इस मूर्ति को इस मंदिर में स्थापित कर दिया था. इसी के साथ ऐसा भी कहा गया है कि गुरुवायुर में जो मूर्ति है, उसे द्वापर युग में भगवान कृष्‍ण द्वारा प्रयोग किया गया था. 
 
मंदिर के समीप एक गज अभयारणय है, जिसे पुन्नाथुर कोट्टा के नाम से जाना जाता है. आपको इस बात की हैरानी होगी लेकिन ये बात सोलह आने सच है कि इस मंदिर में जो कुल 60 हाथी हैं जिन्हें भक्तों द्वारा दान किया गया है. इन हाथियों को मंदिर के कामों के लिए प्रशिक्षित किया जाता है.
 
मंदिर में पूजा की दिनचर्या को काफी सख्ती से पालन किया जाता है, बता दें कि मंदिर के मुख्य पंडित सुबह तीन बजे के करीब मंदिर पहुंच जाते है और वह दोपहर 12 बजकर 30 मिनट की पूजा होने तक किसी भी चीज का सेवन (खाना-पीना) नहीं करते है.
 

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