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मदर्स डे स्पेशल: लबों पर उसके कभी बददुआ नहीं होती, एक मेरी मां है जो मुझसे ख़फा नहीं होती

वैसे तो मां के लिए हर वो दिन किसी त्योहार से बढ़कर है जब वो अपने बच्चे को मुस्कुराते हुए देखती है. बच्चे को थोड़ी सी तकलीफ मॉ की रात की नींद उड़ा देती है.

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  • Last Updated: May 13, 2017 17:51:15 IST
नई दिल्ली: वैसे तो मां के लिए हर वो दिन किसी त्योहार से बढ़कर है जब वो अपने बच्चे को मुस्कुराते हुए देखती है. बच्चे को थोड़ी सी तकलीफ मॉ की रात की नींद उड़ा देती है. दुनिया में मां ही है जो अपने बच्चों को लिए अपनी थाली की रोटी के टूकड़े नहीं, पूरी रोटी ही परोस देती है. पूरी दुनिया में मई महीने के दूसरे रविवार को मदर्स डे मनाया जाता है.
 
इस दिन को हर व्यक्ति अपने हिसाब से सेलिब्रेट करता है. इसलिए हम भी मां की बात करेंगे. आपको बताएंगे की इस दुनिया में मां को किस तरह से बताया गया है. क्या-क्या बताया गया है. कोई मॉ की सेवा में ही पूरी जिंदगी लगा दिया तो किसी ने मॉ के लिए अपना सब कुछ निछावर कर दिया. 
 
1. किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई
   मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई.
 
ये शेर हिंदी और उर्दु के मशहुर कवि मुनव्वर राना की है. ये लिखते हैं जब घर में बटवारा हो रहा था किसी किसी भाई को घर मिला, किसी को दुकान मिली, लेकिन मैं घर में सबसे छोटा था तो मेरे हिस्से में मॉं आई. राना का यह शेर बहुत प्रसिद्ध शेर है जो लोगों के जुबान पर हमेशा रहता है.
 
2. कभी दर्जी कभी आया कभी हाकिम बनी है मां
   नहीं है उज्र उसको कोई भी किरदार जीने से.
 
इस शेर को कवि पवन कुमार ने गाया है. ये शेर ही पढ़कर ही आप समझ जाएंगे की मां हमारे लिए क्या-क्या बनती और करती है.
 
3. बेसन की सोंधी रोटी पर, खट्टी चटनी जैसी मां
   याद आती है चौका बासन, चिमटा फुंकनी जैसी मां
 
इस शेर को निदा फ़ाज़ली ने लिखा है. इस शेर को पढ़ने के बाद आप फिर से पुराने दिनों में लौट जाएंगे. बचपना में. इसलिए कहा गया है इस दुनिया में सबसे उपर मां है. 
 
4. एक मुद्दत मिरी मां नहीं सोई ‘ताबिश’
   मैंने इक बार कहा था मुझे डर लगता है
 
अब्बास ताबिश ने इस शेर मां को बता दिया है. कहने का मतलब है कि अगर आप मां से कह दो कि मुझे डर लगता है तो मां आपके डर को दूर करने के लिए रात की नींद भी त्याग देती है.
 
5.शाम सी नम रातों सी भीनी, भोर सी है उजियारी मां
   मुझमें बस थोड़ी सी मैं हूं, मुझमें बाकी सारी मां
 
सोनरूपा विशाल अपने कविता के माध्यम से कहती है कि मां शाम सी नम है, मां को देखकर अंधेरा अपने आप छट जाता है. मेरे अंदर थोड़ी सी मैं हूं बाकी मां है. 

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