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Muharram 2017 : मुहर्रम पर मातम मनाने के पीछे ये है वजह

आज देशभर में मुहर्रम मनाया जा रहा है. मुहर्रम कोई पर्व नहीं बल्कि मातम का दिन होता है. मुहर्रम के दिन मुस्लिम समाज अपने दुख को व्यतीत करते हैं. इमाम हुसैन की शहादत की याद में मुहर्रम को मनाया जाता है. इस दिन हिजरी संवत का पहला माह होता है. मुहर्रम के दिन पूर्व शिया मुस्लाम इमाम हुसैन की याद में शोक मनाते हैं. इस्लाम की तारीख में पूरी दुनिया के मुसलमानों का प्रमुख नेता यानी खलीफा चुनने का रिवाज रहा है. मुस्लिम धर्म के अनुसार ऐसे में पैगंबर मोहम्मद के बाद चार खलीफा चुनते थे. जिन लोगों ने हजरत अली को अपना इमाम (धर्मगुरु) और खलीफा चुना, वे शियाने अली यानी शिया कहलाए.

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  • Last Updated: October 1, 2017 02:11:12 IST
नई दिल्ली. आज देशभर में मुहर्रम मनाया जा रहा है. मुहर्रम कोई पर्व नहीं बल्कि मातम का दिन होता है. मुहर्रम के दिन मुस्लिम समाज अपने दुख को व्यतीत करते हैं. इमाम हुसैन की शहादत की याद में मुहर्रम को मनाया जाता है. इस दिन हिजरी संवत का पहला माह होता है. मुहर्रम के दिन पूर्व शिया मुस्लाम इमाम हुसैन की याद में शोक मनाते हैं. इस्लाम की तारीख में पूरी दुनिया के मुसलमानों का प्रमुख नेता यानी खलीफा चुनने का रिवाज रहा है. मुस्लिम धर्म के अनुसार ऐसे में पैगंबर मोहम्मद के बाद चार खलीफा चुनते थे. जिन लोगों ने हजरत अली को अपना इमाम (धर्मगुरु) और खलीफा चुना, वे शियाने अली यानी शिया कहलाए.
 
इसीलिए मनाया जाता है मुहर्रम
मोहम्मद पैंगबर के मरने के बाद 50 साल बाद मक्का से दूर कर्बला के गवर्नर यजीद ने खुद को खलीफा घोषित कर दिया. कर्बला वही है जिसे अब सीरिया के नाम से जाना जाता है. इसके लिए उसने आवाम  पर खौफ फैलाना शुरू कर दिया. वो लोगों को डराने सताने का काम करने लगा. इन सबके चलते हजरत मुहम्मद के वारिस ने यजीद का कड़ा विरोध किया. 
 
 
इमाम हुसैन व उनके परिवार पर यजीद ने हमला कर दिया. लेकिन इस बार इमाम हुसैन की सेना ने भी यजीद पर हमले का मुंह तोड़ जवाब दिया. हालांकि की इस युद्ध में इमाम हुसैन की सेना हार गई. और इसी तरह यजीद ने मुहम्मद को उनके परिवार समेद मरवा दिया. तभी से इस दिन को मुहर्रम के रूप में मनाया जाता है. 
 
 
मुहर्रम के दौरान शिया समाज के लोग 10 मुहर्रम के दिन काले कपड़े पहनते हैं. तो सुन्नी समाज के लोगों के लोग 10 मुहर्रम के दिन तक रोजा रखते हैं. और मुहर्रम के दिन सभी लोग मिल कर इमाम हुसैन की याद में शोक मनाते हैं और जिन लोगों की मौत उस दिन हुई थी उनकी शान्ति की दुआ मांगते हैं. इस दिन का बांस की पतली लकड़ियों से बने ढांचे होते हैं जिन्हें ताजिया कहा जाता है.

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