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काली पूजा 2017: दिवाली की रात 12 बजे शुरू होती है निशा पूजा, तात्रिकों-अघोरियों का लगता है मेला

ब अमावस की काली रात को रौशनी से पाट दिया जाता है. बहुत से लोग इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं और उन्हें प्रसन्न करते हैं लेकिन पश्चिम बंगाल और असम में इस दिन काली पूजा होती है.

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  • Last Updated: October 17, 2017 08:10:00 IST
नई दिल्ली: 19 अक्टूबर को देश में पूरी धूमधाम से दिवाली का त्योहार मनाया जाएगा. चारो तरफ रौशनी ही रौशनी होगी. अमावस की इस काली रात में जगमगाती रौशनी के बीच अंधेरा कहीं खो जाएगा. हर दिवाली ऐसा ही होता है जब अमावस की काली रात को रौशनी से पाट दिया जाता है. बहुत से लोग इस दिन मां लक्ष्मी की पूजा करते हैं और उन्हें प्रसन्न करते हैं लेकिन पश्चिम बंगाल और असम में इस दिन काली पूजा होती है. इसे महानिशा पूजा भी कहा जाता है. ये पूजा रात 12 बजे से शुरू होती है. 
 
कहा जाता है कि मां काली सिद्धियों और परलौकिक शक्तियों की स्वामिनी हैं. निशा पूजा मां काली की आम पूजा नहीं है. मां काली को प्रसन्न करने के लिए उल्लू, काले कबूतर या काले छागर की बलि दी जाती है. कहा जाता है कि निशा पूजा वही देख सकता है जिसपर माता की असीम कृपा हो. निशा पूजा रात 12 बजे से शुरू होकर लगातार तीन घंटे तक चलती है. इसके बाद पूजा में शामिल हुए भक्तों को प्रसाद दिया जाता है. इस प्रसाद को लेकर भक्तों को तुरंत अपने घर जाना होता है. अगर आपने अपने घर परिवार के किसी सदस्य के लिए मन्नत मानी है तो ये प्रसाद तुरंत उन्हें खिलाना होता है. 
 
तंत्र-मंत्र और साधना करने वालों के लिए महानिशा पूजा या काली पूजा का विशेष महत्व होता है. कहा जाता है कि इस दिन रात 12 बजे से सुबह तक तंत्र मंत्र करने से विशेष सिद्धियों की प्राप्ति होती है. यही वजह है कि दिवाली की रात तांत्रिकों और अघोरियों का श्मनान में तांता लगा रहता है. दिवाली की रात मां लक्ष्मी की पूजा के बाद रात 12 बजे से निशा पूजा शुरू होती है जो सुबह करीब 3 बजे तक चलती है. इस दौरान ग्रहों के योग इस तरह के बनते हैं कि तंत्र क्रिया करने वालों को विशेष सिद्धियां प्राप्त होती है. इस दिन मां लक्ष्मी के वाहन कहे जाने वाले उल्लू की बलि भी दी जाती है. 
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