नई दिल्ली: हर धर्म की अपनी अलग-अलग परंपराएं होती हैं. शादी, पूजा के लिए अलग-अलग रस्में होती हैं और किसी की मृत्यु पर भी अलग-अलग क्रिया-कर्म निभाई जाती हैं. कुछ धर्मों में शव का दाह संस्कार किया जाता है, कुछ में उसे दफनाया जाता है, कुछ में शव को नदियों में प्रवाहित करने की परंपरा है. लेकिन यह एक ऐसा धर्म है जिसमें शवों का न तो दाह संस्कार किया जाता है और न ही दफनाया जाता है. आइए आगे जानते हैं कि ये रीति-रिवाज किस धर्म से संबंधित हैं?
बता दें कि हिंदू धर्म में वयस्कों के शवों का दाह संस्कार किया जाता है यानी जला दिया जाता है. बच्चों के शवों को दफनाया जाता है. इसके अलावा शवों को नदियों में प्रवाहित करने की भी परंपरा है. इसी तरह मुस्लिम और ईसाई धर्म में शवों को जमीन में दफना दिया जाता है. लेकिन भारत में एक ऐसा धर्म भी है जिसमें मृत्यु के बाद शव का न तो दाह संस्कार किया जाता है और न ही उसे दफनाया जाता है. यह धर्म है पारसी धर्म, जिसमें अंतिम संस्कार करने का तरीका बहुत अलग है.
पारसी समुदाय की जनसंख्या बहुत कम है. भारत में अधिकांश पारसी लोग रहते हैं और रिपोर्ट्स के मुताबिक उनकी संख्या भी 1 लाख से कम है. लेकिन पारसी विभिन्न क्षेत्रों में शीर्ष पर हैं, चाहे वह प्रसिद्ध उद्योगपति टाटा हों, प्रसिद्ध अभिनेता बोमन ईरानी हों या ज्योतिष के क्षेत्र में नाम कमाने वाले बेजान दारूवाला का परिवार हो. अपने काम और प्रतिभा के अलावा पारसी धर्म एक और मामले में खास है. इस धर्म में अंतिम संस्कार का यही तरीका है. पारसी धर्म में अंतिम संस्कार की प्रथा अन्य धर्मों से बिल्कुल अलग है. इसमें मृत शरीर को आकाश के हवाले कर दिया जाता है.
जब भी किसी की मृत्यु होती है, तो पारसी लोग शव को ‘टॉवर ऑफ साइलेंस’ पर ले जाते हैं और वहीं छोड़ देते हैं. इसे ‘दखमा’ कहते हैं. इसके अलावा, पारसी धर्म में अंतिम संस्कार की विधि को ‘दोखमेनाशिनी’ कहा जाता है. मुंबई में एक टावर ऑफ साइलेंस है. टावर ऑफ साइलेंस यानी दखमा एक गोलाकार और बहुत ऊंची चोटी पर है, जिसके ऊपर शव को रखा जाता है. फिर गिद्ध शव को अपना भोजन बनाते हैं. दाह संस्कार के लिए यह प्राकृतिक तरीका अपनाया जाता है ताकि अग्नि, जल, वायु या भूमि में कोई प्रदूषण न हो. करीब 3000 सालों से पारसी लोग इसी तरीके से मृतकों का दाह संस्कार करते आ रहे हैं।
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