नई दिल्ली। आज पूरे देश में बकरीद का त्योहार मनाया जा रहा है। देश में बकरीद का त्योहार मुस्लिम समुदाय बहुत धूमधाम से मनाते हैं। बकरीद को ईद-उल- अजहा के नाम से भी जाना जाता है। यह त्योहार त्याग और इंसानियत का प्रतीक है। इस्लाम धर्म में इस त्योहार को कुर्बोनी का त्योहार कहा जाता है, क्योंकि इसमें अपनी किसी अजीज चीज की कुर्बानी देनी होती है।

कुर्बानी देने की वजह

इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार हर साल ईद की तारीख चांद दिखने के मुताबिक तय की जाती है। जुलहिज्जा की 10वीं तारीख को बकरीद का त्योहार मनाया जाता है। जुलहिज्जा की दिन रमजान समाप्त होने के 70 दिन बाद आती है। बकरीद का त्योहार हजरत इब्राहिम की कुर्बानी की याद में मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन इस्लाम धर्म में किसी जानवर की कुर्बानी दी जाती है। इस्लाम में केवल हलाल तरीके से कमाए गए पैसों से ही दी गई कुर्बानी जायज मानी जाती है। कुर्बानी का गोश्त केवल परिवार के लिए ही नहीं रखा जाता बल्कि इस गोश्त को सबने बांटा जाता है। दी गई कुर्बानी के 3 हिस्से किए जाते हैं। पहला हिस्सा गरीबों को दिया जाता है। दूसरा हिस्सा दोस्त या रिश्तेदारों को दिया जाता है। तीसरा और आखिरी हिस्सा परिवार के लिए रखा जाता है।

बकरीद की परंपरा

इस्लाम धर्म में बकरीद के दिन ऐसे जानवरों की कुर्बानी कुबूल की जाती है जो सेहतमंद होते हैं। अगर जानवर को किसी तरह की बीमारी या समस्या है तो अल्लाह ऐसे जावरों की कुर्बानी को जायज नहीं मानते। इस्लाम धर्म में बकरीद को केवल एक त्योहार नहीं माना गया है बल्कि खुशियों, मेलजोल और इंसानियत का पर्व माना गया है। भारत समेत कई देशों में बकरीदन के दिन की शुरुआत ईद की नमाज से होती है। लोग बकरीद के दिन नए कपड़े पहनते हैं। साथ ही एक-दूसरे को गले लगाकर ईद की मुबारकबाद देते हैं। साथ ही ईदी के रुप में तोहफे और मिठाइयां भी देते हैं।

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