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बूटा मलिक ने खोजी थी अमरनाथ गुफा, सिर्फ उन्हीं का परिवार करवाता था श्रद्धालुओं को यात्रा

नई दिल्ली: इस साल सरकार ने सुरक्षा को लेकर काफी कड़े इंतज़ाम किए हैं, ऐसा इसलिए किया गया है कि वहां रहने वालों और सैलानियों दोनों को दिक़्क़त हो रही है. दो साल बाद अब फिर से अमरनाथ यात्रा शुरू हो गई है. बीते दो साल कोरोना की वजह से ये यात्रा प्रभावित हुई. अब […]

Buta Malik had discovered Amarnath cave, only his family used to make pilgrims travel
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  • Last Updated: July 3, 2022 10:53:33 IST

नई दिल्ली: इस साल सरकार ने सुरक्षा को लेकर काफी कड़े इंतज़ाम किए हैं, ऐसा इसलिए किया गया है कि वहां रहने वालों और सैलानियों दोनों को दिक़्क़त हो रही है.

दो साल बाद अब फिर से अमरनाथ यात्रा शुरू हो गई है. बीते दो साल कोरोना की वजह से ये यात्रा प्रभावित हुई. अब यात्रा फिर से शुरू हुई है तो हम आपको ऐसी कहानी से रूबरू कराने जा रहे हैं, जो मोहब्बत, भाईचारे, कश्मीरियत और संस्कृति को दिखाती है. पहलगाम के बाटाकोट गांव में 95 साल के गुलाम नबी मलिक वही प्रार्थना करते थे जो कि अब अमरनाथ की पवित्र गुफा में पुजा होते है. दो साल बाद फिर से अमरनाथ यात्रा शुरू हो रही है, इससे उनके परिवार की पुरानी यादें फिर ताज़ा हो गईं. जो कि इनके परदादा बूटा मलिक ने खोजी थी. 95 साल के गुलाम नबी मलिक ने 60 साल तक अमरनाथ यात्रा सुविधा दी. महाराजा हरि सिंह ने 1947 में उन्हें तोहफ़ा दिया था जो कि उनके पास अभी भी है.

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मलिक अमरनाथ गुफा के साथ अपने परिवार का नाता बयान करते हैं कि हिंदुओं और मुसलमानों के बीच रिश्ते और गहरे हुए, 1850 में बूटा मलिक ने पवित्र गुफा को ढूंढा जहां क़ुदरती तौर पर बर्फ़ शिवलिंग के रूप में जमी हुई थी. 2005 तक मलिक परिवार ही श्रद्धालुओं को यात्रा करवाता था लेकिन फिर अमरनाथ श्राइन बोर्ड ने उस परम्परा को ख़त्म कर दिया.

गुलाम नबी मलिक कहते है कि शायद 70 साल पहले मैं रानी के साथ यात्रा पर गया था, वहां हमने पूजा करवाई थी और रानी ने मुझें खजूर से भरी एक थाली थी। मलिक परिवार के लिए बूटा मलिक अब भी श्रद्धेय आत्मा हैं, उनके बारे में कई आध्यात्मिक अनुभव बताते हैं. मलिक परिवार बताते है कि मौजूदा सुरक्षा नियमों से पहले बहुत से यात्रियों की यात्रा पूरी नहीं होती थी।

इस साल सरकार ने सुरक्षा को लेकर काफी इंतज़ाम किए हैं जिससे वहां रहने वालों और सैलानियों दोनों को दिक़्क़त न हो. पहले से ही घाटी में कड़ी सुरक्षा है लेकिन अब उसके ऊपर अर्द्धसैनिक बलों की 350 अतिरिक्त कंपनियां यात्रियों की सुरक्षा के लिए तैनात की गई हैं। यात्रा पर हावी नहीं होना चाहिए क्योंकि ये कश्मीर की साझा संस्कृति की एक मिसाल है.

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