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Haridwar Kumbh Mela 2021: कुंभकाल में सिर्फ गंगाजल के स्पर्श से मिलता है करोड़ों पुण्यों का फल, गंगा बन जाती है महाभद्रा

Haridwar Kumbh Mela 2021: कुंभकाल में पवित्र गंगा महाभद्रा का रूप धारण कर लेती है. इस विशिष्ट योग में गंगाजल के मात्र स्पर्श से ही मनुष्य को करोड़ों पुण्यों का फल मिल जाता है. यदि कोई हत्यारा भी कुंभ में गंगा स्नान करे तो वह हत्या के पाप से मुक्त हो जाता है.

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  • Last Updated: March 23, 2021 18:50:47 IST

नई दिल्ली/ कुंभकाल में पवित्र गंगा महाभद्रा का रूप धारण कर लेती है. इस विशिष्ट योग में गंगाजल के मात्र स्पर्श से ही मनुष्य को करोड़ों पुण्यों का फल मिल जाता है. यदि कोई हत्यारा भी कुंभ में गंगा स्नान करे तो वह हत्या के पाप से मुक्त हो जाता है. देखा जाए तो ऐसा ही है गंगा का माहात्म्य, जो आस्थावान को बार-बार धर्मनगरी आने के लिए प्रेरित करता है.

हालांकि वैसे हो तमाम पौराणिक कथाओं में कुंभ का जिक्र आता है, लेकिन सबसे पहले ऐतिहासिक 629 ईस्वी में भारत यात्रा पर आए चीनी यात्री ह्वेन त्सांग के लेखों में ही मिलते हैं. ह्वेन त्सांग को 644 ईस्वी में प्रयाग कुंभ देखने का मौका मिला था. कुंभ वर्तमान स्वरूप में कब ढला, उसके विकास का क्रम क्या रहा, इसे लेकर विद्वजनों की अलग-अलग धारणाएं व तर्क हैं. 1751 ईस्वी में अहमद खां बंगस ने दिल्ली के वजीर एवं अवध के नवाब सफदरजंग को परास्त कर इलाहाबाद के किले को घेर लिया था. इससे पहले कि वह नगर को भी अपने अधिकार में ले लेता तब तक कुंभ आ गया था. जिसका हिस्सा बनने के लिए देश के विभिन्न भागों से धर्मपरायण व्यक्तियों का महासम्मेलन आयोजित हुआ. युद्ध में अहमद खां की सेना को मुंह की खानी पड़ी.

इस तरह प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन व नासिक में आयोजित होने वाले कुंभ मेलों के दौरान शंकर सिद्धांत के अनुयायी दशनामी संन्यासियों की अगुआई में ही धार्मिक अनुष्ठान होते रहे हैं. दशनामी इन चारों स्थानों में प्राचीन काल से ही अपने केंद्र स्थापित किए हुए हैं. कुंभ मेलों के विकास के मूल में चाहे उक्त कारणों में से कोई कारण रहा हो अथवा इनके भी पूर्वकाल से यही परंपरा चली आ रही हो.

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