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Jitiya Vrat 2019 Date: जानें कब है जीवित्पुत्रिका व्रत, शुभ मुहूर्त और व्रत कथा

Jitiya Vrat 2019 date: जीवित्पुत्रिका व्रत 22 सितंबर को रखा जाएगा. ये व्रत मां अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए रखती हैं. कई जगह इस व्रत को कई नाम से बोला जाता है. कहीं-कहीं इसे जिउतिया भी कहा जाता है. इस पर्व को खास तौर पूर्वी उत्तर, बिहार और नेपाल में भी रखा जाता है. इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं. जाने इस मुहूर्त का क्या है महत्व

Jitiya Vrat 2019 Date
inkhbar News
  • Last Updated: September 18, 2019 17:46:14 IST

नई दिल्ली. जीवित्पुत्रिका व्रत 22 सितंबर को रखा जाएगा. ये व्रत मां अपने बच्चों की लंबी उम्र के लिए रखती हैं. कई जगह इस व्रत को कई नाम से बोला जाता है. कहीं-कहीं इसे जिउतिया भी कहा जाता है. इस पर्व को खास तौर पूर्वी उत्तर, बिहार और नेपाल में भी रखा जाता है. इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं. जाने इस मुहूर्त का क्या है महत्व. 

शुभ मुहूर्त

जिउतिया का शुऊ मुहूर्त 21 सितंबर सुबह के साथ 22 सितंबर शाम 7.50 तक का समय है. इस दौरान आप पूजा कर सकते हैं.

जितिया का महत्व

ये व्रत अश्विन माह के कृष्णपक्ष की सप्तमी तिथि से लेकर नवमी तिथि तक मनाया जाता है. इस व्रत से एक दिन पहले नहाय खाय होता है. दूसरे दिन निर्जला व्रत रखते है और तीसरे दिन पारण किया जाता है. साथ ही ऐसा भी कहा जाता है कि जो इस व्रत की कथा को सुनता है वह जीवन में कभी संतान वियोग नहीं होता है. संतान के सुखी और स्वस्थ्य जीवन के लिए यह व्रत रखा जाता है.

जितिया व्रत कथा

जीवित्पुत्रिका व्रत की पौराणिक कथा- इस व्रत की कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है. कहा जाता है कि महाभारत के युद्ध के बाद अश्वथामा अपने पिता की मृत्यु की वजह से क्रोध में था. वह अपने पिता की मृत्यु का पांडवों से बदला लेना चाहता था. एक दिन उसने पांडवों के शिविर में घुस कर सोते हुए पांडवों के बच्चों को मार डाला. उसे लगा था कि ये पांडव हैं. लेकिन वो सब द्रौपदी के पांच बेटे थे. इस अपराध की वजह से अर्जुन ने उसे गिरफ्तार कर लिया और उसकी मणि छीन ली. इससे आहत अश्वथामा ने उत्तरा के गर्भ में पल रही संतान को मारने के लिए ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर दिया. लेकिन उत्तरा की संतान का जन्म लेना जरूरी था. जिस वजह से श्रीकृष्ण ने अपने सभी पुण्य का फल उत्तरा की गर्भ में मरी संतान को दे दिया और वह जीवित हो गया. गर्भ में मरकर जीवित होने के वजह से उसका नाम जीवित्पुत्रिका पड़ा और यही आगे चलकर राज परीक्षित बने. तब से ही इस व्रत को रखा जाता है.

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