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जानिए क्यों बकरीद पर हर एक मुसलमान के लिए जरूरी है कुर्बानी?

कुर्बानी यानि ऐसी प्रथा जिसमें बकरीद के मौके पर अल्लाह के नाम पर भेड़ या बकरी को काटकर उसका गोश्त गरीब लोगों में बांटा जाता है. इस्लाम में मानना है कि खुदा कुर्बानी के पीछे बंदों की नीयत को देखता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर इस्लाम क्यों सदियों से चलती आ रही है कुर्बनी की प्रथा और क्या है इसके पीछे का इतिहास.

Eid ul Ajha
inkhbar News
  • Last Updated: February 8, 2018 06:29:58 IST

नई दिल्ली: मुस्लिम त्योहार ईद उल अजहा का नाम सुनते ही कुर्बानी नाम जहन में आता है. कुर्बानी यानी ऐसी प्रथा जिसमें बकरीद के मौके पर अल्लाह के नाम पर भेड़ या बकरी को काटकर उसका गोश्त गरीब लोगों में बांटा जाता है. इस्लाम में मानना है कि खुदा कुर्बानी के पीछे बंदों की नीयत को देखता है. अल्लाह को पसंद है कि उसका बंदा हलाल तरह से कमाएं हुए पैसे को ही कुर्बानी के लिए खर्च करे. लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर इस्लाम क्यों सदियों से चलती आ रही है कुर्बनी की प्रथा और क्या है इसके पीछे का इतिहास.

इस्लाम में माना जाता है कि कुर्बानी की शुरूआत उस समय से हुई जब एक मुस्लिम पैगंबर इब्रा‍हीम अलैस सलाम को एक ख्वाब आया जिसमें खुदा का हुक्म था कि हजरत इब्रा‍हीम अपने बेटे हजरत इस्माईल को खुदा की राह में कुर्बान कर दें. हालांकि, हजरत इब्रा‍हीम के लिए यह एक मुश्किल घड़ी थी लेकिन उन्होंने अल्लाह के हुक्म को मानते हुए अपने बेटे की कुर्बानी करने के लिए तैयार हो गए. लेकिन जैसे ही इब्राहीम अलैस सलाम छुरी लेकर अपने बेटे को कुर्बान करने की ओर बढ़े तो इतने में ही फरिश्तों के सरदार कहे जाने वाले जिब्रील ने तेजी से हजरत इब्राहीमके बेटे हजरत इस्माइल को हटाकर उनकी जगह एक मेमना रख दिया. जिस वजह से हजरत इब्राहीम की छुरी बेटे पर न चलकर एक मेमने पर चल गई और अल्लाह की राह में किसी मुसलमान की ओर से यह पहली कुर्बानी हुई. जिसके बाद जिब्रील अमीन ने इब्राहीम अलैस सलाम को खुशखबरी सुनाई कि अल्लाह ने उनकी कुर्बानी को कुबूल कर लिया है.

वहीं इस मामले में अगर शरियत की माने तो ईद-उल-अजहा पर कुर्बानी हर उस मुसलमान पर फर्ज है जिसके पास 13 हजार रूपए हों या उसके बराबर कीमत के सोने-चांदी के गहने हों. ऐसे में अगर कोई मुसलमान हैसियत को देखते हुए कुर्बानी नहीं दे रहा है तो इस्लाम में वह गुनाहगार माना जाएगा. वहीं अगर किसी शख्स ने हैसियत को देखते हुए पहले कुर्बानी ना दी हो तो वह साल के बीच में गरीब लोगों को सदका देकर इसे अदा कर सकता है. बता दें कि शरीयत में कुर्बानी के गोश्त को तीन हिस्सों में बांटा गया है जिसमें पहला हिस्सा गरीब लोगों के लिए निकाला जाता है वहीं दूसरा हिस्सा दोस्त के लिए और तीसरे हिस्से के घर के लिए बचाया जाता है.

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