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रावण चला जामवंत को बंदी बनाने, लक्ष्मण ने ऐसा शस्त्र निकाला कि लंकापति लगा कांपने!

Shriram: प्रभु श्रीराम लंका विजय के लिए युद्ध की तैयारी में लगे हुए थे। रावण से युद्ध करने से पहले वो रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना करना चाहते थे लेकिन इसके लिए उन्हें एक योग्य आचार्य की आवश्यकता थी। जामवंत ने प्रभु राम को रावण को बुलाने की सलाह दी क्योंकि वह विद्वान पंडित और […]

रावण चला जामवंत को बंदी बनाने
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  • Last Updated: July 13, 2024 09:46:35 IST

Shriram: प्रभु श्रीराम लंका विजय के लिए युद्ध की तैयारी में लगे हुए थे। रावण से युद्ध करने से पहले वो रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना करना चाहते थे लेकिन इसके लिए उन्हें एक योग्य आचार्य की आवश्यकता थी। जामवंत ने प्रभु राम को रावण को बुलाने की सलाह दी क्योंकि वह विद्वान पंडित और शिवभक्त था। श्रीराम ने जामवंतजी को लंका भेजा ताकि वो रावण से बात कर सके। वाल्मीकि रामायण और तुलसीकृत रामायण में इसका जिक्र नहीं है लेकिन तमिल भाषा में लिखी गई महर्षि कम्बन की इरामावतारम में इस कथा का वर्णन है।

लंका पहुंचे जामवंत जी

जामवंतजी जब लंका पहुंचे तो स्वयं रावण ने द्वार पर पहुंचकर उनका अभिनदंन किया। उन्होंने रावण के सामने कहा कि जंगल में मेरे एक यजमान यज्ञ करना चाहते हैं तो आपसे अनुरोध है कि आप उनके पुरोहित बन जाएं। रावण ने जब जामवंत से प्रश्न किया कि यजमान कौन है तो इसका जवाब उन्होंने दिया कि अयोध्या के महाराज दशरथ के पुत्र राजकुमार राम हैं। समुद्र के उस पार शिवलिंग की स्थापना करना चाहते हैं। रावण ने मुस्कुराते हुए कहा कि क्या राम शिवलिंग की स्थापना लंका विजय की कामना से करना चाहते हैं तो जामवंत ने हां में सिर हिलाया।

रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापना

रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापना

अमोघ अस्त्र से समस्त दानव का संहार

जामवंत जी ने रावण से कहा कि आपको जीवन में पहली बार किसी ने पुरोहित माना है। भारतवर्ष के प्रथम प्रशंसित महर्षि पुलस्त्य के सगे भाई महर्षि वशिष्ठ के यजमान का आमंत्रण आप ठुकरा देंगे? जामवंत जी की ऐसी बातें सुनकर रावण थोड़ा नाराज हो गया। उसने कहा कि आप लंका में हैं। यदि अभी हमने आपको अभी बंदी बना लिया तो आप क्या करोगे? जामवंत जी रावण की बात सुनकर हंसने लगे और कहा कि मुझे बंदी बनाने की शक्ति लंका के समस्त दानवों में नहीं है। हे रावण! ध्यान रहें कि हम दोनों की सारी बातें लक्ष्मण सुन रहे हैं। लक्ष्मण अपने पाशुपतास्त्र से समस्त दानव कुल का संहार कर देंगे।

कांप उठा लंकापति

जामवंत जी की बातें सुनकर सभी दानव कांपने लगे। रावण भी सोच में पड़ गया और सोचने लगा कि पाशुपतास्त्र तो शिवजी का वह अमोघ अस्त्र है, जिसका एक साथ दो धनुर्धर प्रयोग नहीं कर सकते। दरअसल जामवंत जी के चलने से पहले ही लक्ष्मण ने पशुपतास्त्र का संधान कर लिया था। पशुपतास्त्र मेघनाद के पास भी था और महादेव के पास भी लेकिन जो पहले इसका संधान कर लेता था, उसे वही चला सकता था। यहां तक कि भगवान शंकर भी इसे फिर नहीं चला सकते थे। रावण भयभीत होकर सोचने लगा कि लक्ष्मण ने जब उसे संधान कर लिया है फिर उसे स्वयं महादेव भी नहीं रोक सकते। इसके बाद वह जामवंत जी के साथ राम के आचार्य बनने के लिए जाने को तैयार हो गया।

 

 

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