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Surya Grahan 2024: शारीरिक और मानसिक कष्ट दूर करने के लिए सूर्य ग्रहण के दिन करें इन मंत्रों का जाप

नई दिल्लीः इस साल सूर्य ग्रहण 8 अप्रैल को चैत्र अमावस्या पर लगेगा। यह सूर्य ग्रहण अमेरिका और कनाडा में दिखाई देगा। इसके अलावा, सूर्य ग्रहण दुनिया भर के कई अन्य देशों में भी दिखाई देगा। हालांकि, यह सूर्य ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा। सूतक भी इसके लिए उपयुक्त नहीं है. सूर्य ग्रहण के […]

Surya Grahan 2024
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  • Last Updated: April 4, 2024 10:23:06 IST

नई दिल्लीः इस साल सूर्य ग्रहण 8 अप्रैल को चैत्र अमावस्या पर लगेगा। यह सूर्य ग्रहण अमेरिका और कनाडा में दिखाई देगा। इसके अलावा, सूर्य ग्रहण दुनिया भर के कई अन्य देशों में भी दिखाई देगा। हालांकि, यह सूर्य ग्रहण भारत में दिखाई नहीं देगा। सूतक भी इसके लिए उपयुक्त नहीं है. सूर्य ग्रहण के दौरान पृथ्वी पर राहु का प्रभाव बढ़ जाता है। इससे भोजन संदूषण होता है। इसी कारण से शास्त्रों में ग्रहण के दौरान खाने-पीने की मनाही है। इसके अलावा इस दिन शुभ कार्य करने की भी मनाही होती है। इसलिए ग्रहण के दौरान पवित्र शास्त्रों के नियमों का पालन करना चाहिए। राहु के हानिकारक प्रभाव से बचने के लिए आपको हरि नाम का जाप भी करना चाहिए। अगर आप भी शारीरिक और मानसिक पीड़ा से राहत पाना चाहते हैं तो सूर्य ग्रहण के दौरान इन मंत्रों का जाप अवश्य करें।

सूर्य मंत्र

ऊँ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यण्च ।

हिरण्य़येन सविता रथेन देवो याति भुवनानि पश्यन ।।

ऊँ घृणि: सूर्यादित्योम

ऊँ घृणि: सूर्य आदित्य श्री

ऊँ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय: नम:

ऊँ ह्रीं ह्रीं सूर्याय नम:

जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम ।

तमोsरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोsस्मि दिवाकरम ।

ऊँ आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात ।।

राहु ग्रह मंत्र

ऊँ कयानश्चित्र आभुवदूतीसदा वृध: सखा ।

ऊँ ऎं ह्रीं राहवे नम:

ऊँ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:

ऊँ ह्रीं ह्रीं राहवे नम:राहु ग्रह का पौराणिक मंत्र ।।

ऊँ अर्धकायं महावीर्य चन्द्रादित्यविमर्दनम ।

सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम ।।

“ॐ शिरो रूपाय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो राहुः प्रचोदयात्”।।

भगवान शिव स्तुति

शंकरं, शंप्रदं, सज्जनानंददं, शैल-कन्या-वरं, परमरम्यं ।

काम-मद-मोचनं, तामरस-लोचनं, वामदेवं भजे भावगम्यं ॥

कंबु-कुंदेंदु-कर्पूर-गौरं शिवं, सुन्दरं, सच्चिदानंदकंदं ।

सिद्ध-सनकादि-योगीन्द्र-वृन्दारका, विष्णु-विधि-वन्द्य चरणारविंदं ॥

ब्रह्म-कुल-वल्लभं, सुलभ मति दुर्लभं, विकट-वेषं, विभुं, वेदपारं ।

नौमि करुणाकरं, गरल-गंगाधरं, निर्मलं, निर्गुणं, निर्विकारं ॥

लोकनाथं, शोक-शूल-निर्मूलिनं, शूलिनं मोह-तम-भूरि-भानुं ।

कालकालं, कलातीतमजरं, हरं, कठिन-कलिकाल-कानन-कृशानुं ॥

तज्ञमज्ञान-पाथोधि-घटसंभवं, सर्वगं, सर्वसौभाग्यमूलं ।

प्रचुर-भव-भंजनं, प्रणत-जन-रंजनं, दास तुलसी शरण सानुकूलं ॥

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