Kedarnath temple story: आज शुक्रवार 2 मई को केदारनाथ धाम के कपाट भक्तों के लिए खोल दिए गए हैं। केदारनाथ धाम में स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है। जानें केदारनाथ में कैसे भगवान शिव विराजित हुए और पांडवों और भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण से जुड़ी क्या है मान्यता है।

12 ज्योतिर्लिंगों में केदारनाथ धाम में भगवान शिव जी ‘शिवलिंग’ रूप में विराजित हैं। हिमालय क्षेत्र में स्थित केदारनाथ धाम का कपाट करीब 6 महीने तक बंद रहता है और भक्तों के लिए गर्मियों से खोला जाता है।भगवान केदारनाथ धाम के कपाट विधि विधान के साथ आज शुक्रवार 2 मई 2025, को सुबह 7:00 बजे से भक्तों के दर्शन के लिए खोल दिए गए हैं। बड़ी संख्या में भक्त पहले दिन से बाबा केदार के साथ अखंड ज्योत के दर्शन कर रहे हैं। भगवान शिव के धाम का इतिहास भगवान विष्णु के अवतार में नर-नारायण, पांडवो और आदिगुरु शंकराचार्य जी से जुड़ा हुआ है।

प्रकट हुए थे नर-नारायण की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव

केदारनाथ धाम को लेकर बहुत सी मान्यताएं प्रचलित हैं। शिवपुराण की कोटीरुद्र संहिता में लिखा है कि प्राचीन काल में बदरीवन में भगवान विष्णु के अवतार नर-नारायण पार्थिव शिवलिंग बनाकर प्रतिदिन पूजा करते हैं। नर-नारायण की भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव केदारनाथ में प्रकट हुए थे। शिव जी ने नर-नारायण से वरदान मांगने के लिए कहा और तब नर-नारायण ने वरदान मांगा था कि भगवान शिव सदा के लिए यही बस जाये, ताकि और भक्तों को भी भगवान शिव के दर्शन आसानी से हो सकें। तब से भगवान शिव ने नर-नारायण को वरदान देते हुए कहा कि वे यहीं विराजमान होंगे और क्षेत्र केदार के नाम से जाना जाएगा।

एक अन्य मान्यता जुड़ी है पांडवो से

पौराणिक कथा के अनुसार, महाभारत का युद्ध खत्म होने के बाद पांडवों सभी कौरवों और अन्य बंधुओं की हत्या के पाप से मुक्ति चाहते थे, इसलिए वह भगवान शिव जी की खोज पर हिमालय निकल गए थे। पांडवों को आता देख भगवान शिव अंतर्ध्यान होकर केदार में जाकर बस गए थे । जब पांडवों को पता लगा तो वे भी केदार पर्वत पहुंच गए थे।

पांडव जब केदार पर्वत पहुंचे तो भगवान शिव ने उन्हें देखकर भैंसे का रूप धारण कर लिया था और पशुओं के बीच चले गए थे। भगवान शिव के दर्शन के लिए पांडवों ने योजना बनाई। जिसके बाद भीम ने विशाल रूप धारण कर अपने दोनों पैर केदार पर्वत के ऊपर फैला दिए। सभी पशु भीम के पैरों के बीच से गुजरकर निकल गए थे , लेकिन जब भैंसे के रूप में भगवान शिव जी ने पैरों के बीच से निकलने की कोशिश की थी,तो भीम ने उन्हें पहचान लिया।

भगवान शिव जी को पहचानते हुए भीम ने भैंसे को पकड़ने की कोशिश की लेकिन भीम ने भैंसे के पीछे का हिस्सा काफी तेजी से पकड़ लिया था। भगवान शिव जी पांडवों की भक्ति से काफी खुश होकर अपने दर्शन देकर पांडवो का पाप मुक्त कर दिया था । कहा जाता है कि तभी से भगवान शिव को यहां भैंसे की पीठ की आकृति रूप में भी पूजा जाता है। कहते है भैंसे का मुख नेपाल में निकला, जहां भगवान शिव पशुपति नाथ के रूप में पूजे जाते हैं।

आदि शंकराचार्य ने कराया था मंदिर का जिर्णोद्धार

केदारनाथ धाम में स्वयंभू शिवलिंग स्थापित है। कहते है कि स्वयंभू शिवलिंग का अर्थ है जो स्वयं प्रकट हुआ था। कहा जाता है कि केदारनाथ मंदिर का निर्माण पांडव राजा जनमेजय ने कराया था और उसके बाद में मंदिर का जिर्णोद्धार आदि गुरु शंकराचार्य जी ने करवाया था।

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