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ये था महाभारत का वो योद्धा जो कलयुग को करना चाहता था खत्म, फिर कैसे हुआ इसका आगमन, जानिए रहस्य

नई दिल्ली: प्राचीन ग्रंथों में हमें एक ऐसे महान योद्धा का उल्लेख मिलता है, जो कलयुग के दुखों को देख इसे खत्म करना चाहता था। यह योद्धा कोई और नहीं, बल्कि महान बलशाली राजा परीक्षित थे, जिनकी कथा हमें महाभारत और भागवत पुराण में मिलती है। राजा परीक्षित, कुरु वंश के वंशज और अर्जुन के […]

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  • Last Updated: November 1, 2024 13:30:58 IST

नई दिल्ली: प्राचीन ग्रंथों में हमें एक ऐसे महान योद्धा का उल्लेख मिलता है, जो कलयुग के दुखों को देख इसे खत्म करना चाहता था। यह योद्धा कोई और नहीं, बल्कि महान बलशाली राजा परीक्षित थे, जिनकी कथा हमें महाभारत और भागवत पुराण में मिलती है। राजा परीक्षित, कुरु वंश के वंशज और अर्जुन के पौत्र थे। उनकी कहानी कलयुग के आगमन और मानव जीवन पर इसके प्रभाव को दर्शाती है।

राजा परीक्षित और कलयुग का आगमन

महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने राजकाज छोड़कर वन गमन किया और उनके पोते परीक्षित ने हस्तिनापुर का राज्य संभाला। राजा परीक्षित का शासनकाल न्याय और धार्मिकता से परिपूर्ण था। लेकिन समय के साथ, कलयुग का आगमन हुआ। कलयुग अपने साथ अधर्म, पाप, लोभ, और अन्य दुर्गुणों को लेकर आया था। इन सब बातों को देखते हुए परीक्षित ने ठान लिया कि वह कलयुग को अपनी धरती पर पैर नहीं जमाने देंगे।

कलयुग का रूपांतरण

कथा के अनुसार, एक दिन राजा परीक्षित अपने राज्य के दौरे पर निकले और उन्होंने देखा कि एक शूद्र रुपी व्यक्ति गाय और बैल को पीड़ा दे रहा था। यह व्यक्ति वास्तव में कलयुग का प्रतीक था। परीक्षित ने इस अधर्मी व्यक्ति को रोककर उसे दंड देने का निश्चय किया, क्योंकि वह धर्म का पालन करने वाले थे। कलयुग ने राजा से क्षमा माँगी और कहा कि उसे किसी स्थान पर रहने की अनुमति दी जाए। परीक्षित ने कहा कि वह केवल उन स्थानों पर रह सकता है जहां अधर्म हो। इसके लिए राजा ने उसे चार स्थान दिए – जुआ, स्त्री संग, मांसाहार और मदिरा। इसके बावजूद, कलयुग ने राजा परीक्षित से सोने में भी स्थान मांगा। राजा परीक्षित ने इस बात की अनुमति दे दी, जिससे कलयुग को अपनी पकड़ बनाने का मौका मिला।

राजा परीक्षित की परीक्षा और अंत

राजा परीक्षित एक बार वन में शिकार के दौरान प्यास से व्याकुल होकर ऋषि शमीक के आश्रम में पहुंचे। ऋषि ध्यान में लीन थे, और उन्होंने परीक्षित का स्वागत नहीं किया। इसी दौरान कलयुग उनके सिर पर सवार हो गया और परीक्षित को क्रोध आ गया. उन्होंने ऋषि के गले में मृत सर्प डाल दिया। ऋषि के पुत्र ने परीक्षित को सात दिनों में तक्षक नामक नाग द्वारा काट लेने का शाप दे दिया। इस शाप से अवगत होने के बाद परीक्षित ने अपना राज्य छोड़ दिया और गंगा के किनारे जाकर श्रीमद्भागवत का श्रवण किया लेकिन होनी को भला कौन टाल सकता है. राजा परीक्षित को अंतत: सांप ने डस लिया और कलयुग ने पूरी तरह से अपने पैर पसार लिए।

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