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आज मनाई जा रही है वैकुण्ठ चतुर्दशी, जानें शुभ मुहूर्त और विशेष महत्व

नई दिल्ली: आज, 14 नवंबर 2024, को वैकुण्ठ चतुर्दशी का पवित्र पर्व मनाया जा रहा है। हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि […]

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  • Last Updated: November 14, 2024 08:33:54 IST

नई दिल्ली: आज, 14 नवंबर 2024, को वैकुण्ठ चतुर्दशी का पवित्र पर्व मनाया जा रहा है। हिंदू धर्म में इस दिन का विशेष महत्व है, क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाए जाने वाला यह पर्व शिव और विष्णु भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है।

वैकुण्ठ चतुर्दशी का महत्व

वैकुण्ठ चतुर्दशी का उल्लेख धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। इस दिन को लेकर मान्यता है कि भगवान विष्णु इस तिथि पर काशी के मणिकर्णिका घाट पर भगवान शिव से मिलने आए थे। यही कारण है कि इस दिन भगवान शिव और विष्णु की संयुक्त रूप से पूजा की जाती है। ऐसा भी कहा गया है कि इस दिन व्रत और पूजा करने से पापों से मुक्ति मिलती है और मृत्यु के बाद वैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है।

शुभ मुहूर्त

– चतुर्दशी तिथि आरंभ: 13 नवंबर 2024 को रात 8:15 बजे से
– चतुर्दशी तिथि समाप्त: 14 नवंबर 2024 को रात 6:50 बजे तक
– चंद्रोदय- दोपहर 04 बजकर 10 मिनट पर
– चंद्रास्त- 14 नवंबर को सुबह 05 बजकर 53 मिनट पर

पूजा का विशेष मुहूर्त सूर्योदय के बाद से लेकर अगले दिन सूर्यास्त तक रहता है। इस दौरान श्रद्धालु गंगास्नान, दीपदान, और विशेष आराधना करते हैं। मान्यता है कि इस मुहूर्त में भगवान की आराधना करने से उनके आशीर्वाद की प्राप्ति होती है।

पूजा विधि

1. सबसे पहले स्नान कर शुद्ध वस्त्र धारण करें।

2. भगवान शिव और विष्णु की प्रतिमा के सामने दीप जलाएं और फूल अर्पित करें।

3. “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” और “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें।

4. भक्तजन इस दिन कथा सुनते हैं और व्रत रखते हैं।

5. शाम को दीपदान का विशेष महत्व है, जिसमें दीपों को जलाकर भगवान विष्णु और शिव की कृपा प्राप्ति के लिए प्रार्थना की जाती है।

अन्य मान्यताएं

कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु ने भगवान शिव को एक सहस्र कमल अर्पित किए थे, जिसमें से एक कमल खो गया था। भगवान विष्णु ने अपनी आंख को कमल मानकर अर्पण कर दिया था, जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें सुदर्शन चक्र का वरदान दिया था। इसी कारण से यह तिथि शिव और विष्णु दोनों के प्रति भक्ति भाव का प्रतीक मानी जाती है।

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