नई दिल्ली : शास्त्रों के अनुसार एकादशी व्रत सृष्टि के रचयिता भगवान विष्णु से जुड़ा सबसे उत्तम व्रत है, और फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी के नाम से जाना जाता है. बता दें कि विजया एकादशी तिथि 6 मार्च को सुबह 6 बजकर 31 मिनट पर शुरू होगी और एकादशी तिथि अगले दिन 7 मार्च को सुबह 4 बजकर 14 मिनट पर ख़त्म होगी. पंचान के मुताबिक 6 मार्च को एकादशी तिथि मनाई जाएगी, और ऐसा माना जाता है कि एकादशी का व्रत करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त होता है और मोक्ष की भी प्राप्ति होती है.
विजया एकादशी में मान्यता है कि इस व्रत को करने से सर्वत्र विजय प्राप्त होती है और सभी शुभ कार्य संपन्न होते हैं. लंका पर विजय पाने की इच्छा से भगवान राम ने बकदाल्भ्य मुनि के कहने पर समुद्र तट पर इस एकादशी का व्रत किया था. इससे प्रभाव से रावण मारा गया और भगवान रामचन्द्र विजयी हुए, ऐसा माना जाता है कि इस एकादशी के प्रभाव से व्यक्ति को अपने शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और सभी काम उसके लिए उपयोगी हो जाते हैं. इस व्रत को करने से स्वर्ण, भूमि, अन्न और गाय के दान से भी अधिक पुण्य फल प्राप्त होता है और अंततः प्राणी को मोक्ष की प्राप्ति होती है. ये भी माना जाता है कि इस महान पुण्य व्रत को करने से भक्त को वाजपेय यज्ञ का फल प्राप्त होता है.
*ॐ नमोः नारायणाय॥
*ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय॥
*ॐ श्री विष्णवे च विद्महे वासुदेवाय धीमहि। तन्नो विष्णुः प्रचोदयात्॥
*मंगलम भगवान विष्णुः, मंगलम गरुणध्वजः।
मंगलम पुण्डरी काक्षः, मंगलाय तनो हरिः॥
बता दें कि मन को शुद्ध करके जल्दी से सबसे पहले सर्वप्रथम सूर्य नारायण को जल देना चाहिए, इसके बाद शैया पर पीला कपड़ा बिछाकर शेषनाग सिंहासन पर बैठे विष्णुजी और उनके चरण दबाती हुई लक्ष्मीजी की तस्वीर रखकर पूजा करनी चाहिए. भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए सबसे पहले गंगाजल से स्नान करना चाहिए, और उसके बाद फल, फूल, चंदन, धूप, दीप और मिठाई आदि अर्पित करना चाहिए.
बता दें कि एकादशी सेवा के दौरान भगवान विष्णु को उनकी पसंदीदा तुलसी दल अर्पित करना चाहिए. हालांकि तुलसी एक दिन पूर्व ही तोड़ कर रख लें, और इस एकादशी व्रत के बाद सच्चे मन से विष्णु सहस्त्रनाम की कथा का पाठ करना चाहिए.
एकादशी पूजा के दौरान देवी लक्ष्मी की भी विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए, और पूजा के अंत में विष्णु जी की आरती करें, फिर भगवान से अपनी इच्छाएं व्यक्त करें और उनका आशीर्वाद लें. साथ ही इस दिन भूलकर भी तामसिक भोजन ना करें और ना ही दूसरों की निंदा करें.