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भगवान राम ने कब किया था देह त्याग, हनुमान को किस काम के लिए भेजा पाताल लोक

नई दिल्ली: भगवान राम की समाधि और हनुमान को उलझाने की कथा भारतीय धार्मिक और पौराणिक है। यह कथा हमें रामायण के उत्तर कांड से मिलती है, जिसमें भगवान राम के जीवन के अंतिम क्षणों और हनुमान के प्रति उनके विशेष प्रेम को दर्शाया गया है।   संबंधित खबरें Jagannath Rath Yatra 2025 Timing: रथ […]

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  • Last Updated: October 15, 2024 13:42:23 IST

नई दिल्ली: भगवान राम की समाधि और हनुमान को उलझाने की कथा भारतीय धार्मिक और पौराणिक है। यह कथा हमें रामायण के उत्तर कांड से मिलती है, जिसमें भगवान राम के जीवन के अंतिम क्षणों और हनुमान के प्रति उनके विशेष प्रेम को दर्शाया गया है।

 

भगवान राम की समाधि

 

भगवान राम ने अपने जीवन का उद्देश्य पूर्ण कर लिया था। उन्होंने रावण का वध किया, धरती पर धर्म की स्थापना की और अयोध्या को आदर्श राज्य बनाया। लेकिन जब धरती पर उनका कार्य समाप्त हो गया, तब उन्हें भगवान विष्णु के रूप में अपने धाम वापस जाना था। माना जाता है कि भगवान राम ने सरयू नदी के किनारे समाधि ली थी। रामजी ने अपने भाइयों के साथ मिलकर सरयू नदी में प्रवेश किया और वहां से वे अपने परमधाम की ओर प्रस्थान कर गए।

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हनुमान को उलझाने का प्रसंग

 

हनुमान जी को भगवान राम के प्रति उनकी अटूट भक्ति के लिए जाना जाता है। वे रामजी से अत्यधिक प्रेम करते थे और हमेशा उनके साथ रहना चाहते थे। लेकिन भगवान राम जानते थे कि उनके इस संसार से विदा लेने के बाद हनुमान का दुख बहुत गहरा होगा, और हनुमान जी रामजी को छोड़कर कहीं नहीं जाएंगे। इसलिए भगवान राम ने हनुमान को एक विशेष कार्य में उलझा दिया।

कथा के अनुसार, भगवान राम ने हनुमान को उनकी अंगूठी खोजने के लिए पाताल लोक भेजा। यह अंगूठी जानबूझकर जमीन पर गिराई गई थी ताकि हनुमान पाताल लोक जाएं और इस दौरान भगवान राम अपना शरीर त्याग सकें। हनुमान ने जैसे ही अंगूठी को ढूंढने के लिए पाताल लोक का रुख किया, उन्हें वहां नागराज वासुकी मिले। नागराज ने बताया कि हनुमान जैसी ही अंगूठियों का एक बड़ा ढेर पहले से यहां रखा हुआ है, और यह प्रक्रिया बार-बार होती रहती है।

 

अंगूठी फेंकने का उद्देश्य

 

भगवान राम ने अंगूठी जमीन पर इसलिए फेंकी थी क्योंकि वे हनुमान को इस संसार के चक्र से बाहर रखना चाहते थे। हनुमान उनके परम भक्त हैं और भगवान राम उन्हें अपने जाने के बाद दुखी नहीं देखना चाहते थे। यह अंगूठी एक प्रतीक थी कि संसार में जीवन और मृत्यु का चक्र चलता रहता है। रामजी ने इस विधि से हनुमान को एक तरह से उलझा दिया ताकि वे उनके जाने के बाद दुख में न रहें।

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