नई दिल्ली : रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने घोषणा की है कि भारत का पहला हाइपरलूप टेस्टिंग ट्रैक बनकर तैयार हो गया है। यह ट्रैक 410 मीटर लंबा है और इसे बनाने का श्रेय आईआईटी मद्रास, भारतीय रेलवे और स्टार्टअप TuTr की आविष्कार हाइपरलूप टीम को जाता है।

सुपरस्पीड पर ट्रैवल पॉड्स

हाइपरलूप एक अत्याधुनिक परिवहन प्रणाली है, जिसमें कम दबाव वाली नलियों के अंदर सुपरस्पीड पर ट्रैवल पॉड्स को चलाया जाता है। यह ट्रेन और मेट्रो की पारंपरिक तकनीकों से अलग है, जिसमें यात्री पॉड्स को वैक्यूम ट्यूब में हवा वाली सतह पर ले जाया जाता है। एक पॉड में 24 से 28 यात्री यात्रा कर सकते हैं।

तकनीकी विकास

हाइपरलूप तकनीक को भविष्य की परिवहन तकनीक माना जाता है। इसकी दक्षता और लागत-प्रभावशीलता इसे जन परिवहन के क्षेत्र में क्रांतिकारी बनाती है।

इतिहास

इस तकनीक की शुरुआत 1970 में स्विस प्रोफेसर मर्केल जफर ने की थी। 1992 में स्विस मेट्रो ने इस पर काम करना शुरू किया, लेकिन 2009 में यह प्रोजेक्ट बंद हो गया। 2012 में एलन मस्क ने “हाइपरलूप अल्फा” पेपर प्रकाशित करके इसे फिर से दुनिया के सामने पेश किया।

कैसे करता है काम

इस तकनीक में पॉड्स को वैक्यूम ट्यूब में चलाया जाता है, जहां वे कम हवा के दबाव में बहुत तेज़ गति से चलते हैं। यह सिस्टम न केवल समय बचाता है, बल्कि यह ऊर्जा-कुशल भी है। आईआईटी मद्रास और भारतीय रेलवे का यह प्रोजेक्ट देश को आधुनिक परिवहन प्रणाली के क्षेत्र में अग्रणी बनाएगा।