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मुसलमान दिल्ली चुनाव में कन्फ्यूज, फायदा उठा रही BJP, खिलेगा कमल?

दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार का शोर सोमवार शाम को थम गया और उम्मीदवार घर-घर जाकर प्रचार कर रहे हैं. वोटिंग बुधवार को है लेकिन दिल्ली में एकमुश्त और एकतरफा वोट करने वाला मुस्लिम समुदाय इस बार असमंजस में है।

Muslims are confused in Delhi elections, BJP is taking advantage, will Kamal come to power
inkhbar News
  • Last Updated: February 5, 2025 15:25:07 IST

नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार का शोर सोमवार शाम को थम गया और उम्मीदवार घर-घर जाकर प्रचार कर रहे हैं. वोटिंग बुधवार को है लेकिन दिल्ली में एकमुश्त और एकतरफा वोट करने वाला मुस्लिम समुदाय इस बार असमंजस में है। दिल्ली चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी और राहुल गांधी ने जिस सियासी रवैये और अंदाज से सियासी माहौल बनाया है, उससे मुस्लिम बहुल सीटों पर समीकरण बदल गए हैं. इससे मुस्लिम मतदाता भ्रमित नजर आ रहे हैं.

क्या उपाय ढूंढ पाएगी?

सवाल उठता है कि असमंजस की इस स्थिति में बीजेपी मुस्लिम बहुल सीटों पर अपनी जीत के लिए क्या उपाय ढूंढ पाएगी? दिल्ली चुनाव में बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच कांटे की टक्कर मानी जा रही है. ऐसे में मुस्लिम मतदाता काफी अहम हो गए हैं. दिल्ली के राजनीतिक इतिहास में यह पहला ऐसा चुनाव है, जिसमें मुस्लिम मतदाता राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों के मुद्दों की ओर देख रहे हैं.

दिल्ली दंगों के दौरान आम आदमी पार्टी के रवैये और बदलती विचारधारा इसकी बड़ी वजह बनी, जिसके कारण मुस्लिम सीटों पर मुश्किल स्थिति पैदा हो गई है। दिल्ली में 13 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं, जिनमें से 12 सीटों पर 30 से 50 फीसदी के बीच है. 2020 में मुसलमानों ने एकजुट होकर आम आदमी पार्टी के पक्ष में वोट किया. इस बार AIMIM ने सिर्फ दो उम्मीदवार उतारे हैं.

दंगों के आरोप में जेल में हैं

ओखला से शिफा उर रहमान और मुस्तफाबाद सीट से ताहिर हुसैन को मैदान में उतारा गया है.दोनों उम्मीदवार दिल्ली दंगों के आरोप में जेल में हैं. दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के सात और आप के पांच मुस्लिम उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. ऐसे में बीजेपी को छोड़कर सभी पार्टियों ने मुस्लिम बहुल सीटों पर अपनी पूरी ताकत झोंक दी है और उन्हें लुभाने की हर संभव कोशिश की है.

दिल्ली की सीलमपुर, मुस्तफाबाद, मटिया महल, बल्लीमारान और ओखला सीटों पर बीजेपी को छोड़कर सभी पार्टियों के मुस्लिम उम्मीदवार ही अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. इन सीटों पर मुस्लिम विधायक जीतते रहे हैं. मुस्तफाबाद और ओखला सीट पर कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और ओवैसी की एआईएमआईएम के मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में हैं। इसके चलते मुस्लिम बनाम मुस्लिम की सियासी बिसात तो बिछ गई है, लेकिन बीजेपी की ओर से हिंदू उम्मीदवार होने से मुस्लिम मतदाताओं में दुविधा की स्थिति पैदा हो गई है.

जमानत भी नहीं बचा पाई

इन पांच सीटों के अलावा बाबरपुर, गांधीनगर, सीमापुरी, चांदनी चौक, सदर बाजार, किराड़ी, जंगपुरा और करावल नगर समेत 18 सीटें हैं, जहां मुस्लिम आबादी 10 से 40 फीसदी तक मानी जाती है. इन इलाकों में मुस्लिम समुदाय निर्णायक भूमिका निभाता रहा है. दिल्ली में मुस्लिम लंबे समय से कांग्रेस के पारंपरिक वोटर हुआ करते थे, लेकिन 2015 और 2020 में आम आदमी पार्टी के पक्ष में वोट करते रहे हैं। इसके चलते मुस्लिम बहुल सीटों पर कांग्रेस अपनी जमानत भी नहीं बचा पाई।

आम आदमी पार्टी सभी मुस्लिम बहुल सीटें जीतने में सफल रही. 2020 में सीएए-एनआरसी आंदोलन के कारण उत्तरी दिल्ली में हुए दंगों के कारण मुसलमानों का आम आदमी पार्टी से मोहभंग हो गया है। इसके अलावा कोरोना काल में तबलीगी जमात को लेकर आम आदमी पार्टी के रवैये से मुसलमानों में नाराजगी है, जिसका असर 2025 के विधानसभा चुनाव में साफ दिख रहा है.

सियासी टेंशन बढ़ी

दिल्ली चुनाव में इन दो मुद्दों पर कांग्रेस नेता और असदुद्दीन ओवैसी अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी को घेरते नजर आए हैं, जिससे दिल्ली के मुस्लिम इलाकों में आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार की सियासी टेंशन बढ़ गई है, लेकिन एक तरकीब उनके पक्ष में काम कर रही है. इससे कई सीटों पर दिलचस्प मुकाबला पैदा हो गया है.

कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के पांचों मुस्लिम उम्मीदवार आमने-सामने चुनाव लड़ रहे हैं. ओवैसी के दो मुस्लिम उम्मीदवार होने के कारण दो सीटों पर तीन बड़ी पार्टियों के मुस्लिम हैं, जबकि बीजेपी ने इस बार किसी भी मुस्लिम को टिकट नहीं दिया. दिल्ली की 5 सीटों पर मुस्लिम बनाम मुस्लिम की लड़ाई है. ऐसे में मुस्लिम मतदाता किसी एक पार्टी के पक्ष में एकतरफा वोटिंग की परंपरा से अलग नजर आ रहे हैं. कांग्रेस और ओवैसी की घेराबंदी के चलते आम आदमी पार्टी के नेताओं को मुस्लिम बहुल सीटें जीतने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ रही है.

सॉफ्ट कॉर्नर नजर आ रहा

एक तरफ मुसलमानों के मन में ओवैसी के उम्मीदवारों के लिए सहानुभूति है तो दूसरी तरफ कांग्रेस के लिए सॉफ्ट कॉर्नर नजर आ रहा है. ऐसे में मुसलमानों को बीजेपी की जीत का डर भी सता रहा है. आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार मुस्लिम इलाकों में मुस्लिम वोटों के बंटवारे के आधार पर बीजेपी की जीत की संभावना जता रहे हैं. इससे मुस्लिम मतदाता असमंजस में हैं.

मुस्लिम इलाकों में राहुल गांधी के लिए सॉफ्ट कॉर्नर नजर आ रहा है, लेकिन जिस तरह से औवेसी की जनसभा में भीड़ उमड़ी है उसके बाद हालात बदल गए हैं. ओखला विधानसभा सीट के मतदाता शरीफ नवाज कहते हैं कि मेरा दिल कहता है कांग्रेस के लिए, लेकिन मेरा दिमाग कहता है आम आदमी पार्टी के लिए. मेरी सहानुभूति AIMIM की शिफ़ा उर रहमान के साथ है. मुसलमानों के मुद्दे पर असदुद्दीन औवेसी और राहुल गांधी खुलकर बोलते हैं, लेकिन केजरीवाल चुप रहते हैं.

मजबूती से लड़ते दिख रहे

ऐसे में कांग्रेस और एआईएमआईएम मेरे वोट के हकदार हैं, लेकिन डर है कि बीजेपी जीत सकती है. ओखला में तीनों मुस्लिम उम्मीदवार मजबूती से चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन यह साफ नहीं है कि आगे कौन है. कई अन्य मुस्लिम मतदाता भी ऐसी ही बातें कहते दिखे, लेकिन वे इस बात को लेकर असमंजस में दिखे कि सबसे मजबूत स्थिति में कौन है। दिल्ली की सभी मुस्लिम बहुल सीटों पर मुस्लिम मतदाता असमंजस की स्थिति में नजर आ रहे हैं.

ओखला और मुस्तफाबाद में बड़ी संख्या में मुस्लिम मतदाता एआईएमआईएम के साथ खड़े दिख रहे हैं, वहीं आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार भी मजबूती से लड़ते दिख रहे हैं. इस तरह दोनों सीटों पर मुस्लिम वोट तीन जगह बंटते दिख रहे हैं. वहीं, मटिया महल, सीलमपुर और बल्लीमारान सीटों पर मुस्लिम मतदाता आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के बीच बंटे नजर आ रहे हैं। असमंजस की स्थिति में यूपी में बीजेपी का कमल खिलने का उपाय दिख गया है.

राजनीतिक राह आसान 

दिल्ली चुनाव में बीजेपी की रणनीति मुस्लिम बहुल सीटों पर धार्मिक ध्रुवीकरण के जरिए मुस्लिम वोटों के जवाब में हिंदू वोटों को अपने पक्ष में गोलबंद करने की है. ओखला और मुस्तफाबाद विधानसभा सीटों पर मुस्लिम बनाम मुस्लिम के बीच लड़ाई होती दिख रही है. इससे बीजेपी को अपनी जीत की उम्मीद है.

कांग्रेस, आप और एआईएमआईएम के उम्मीदवारों का जोर मुस्लिम वोटों को गोलबंद करने पर है, जबकि बीजेपी की रणनीति हिंदू वोटों को एकजुट करने की है. इससे बीजेपी के लिए अपनी राजनीतिक राह आसान दिख रही है क्योंकि उसे लगता है कि मुस्लिम वोटों के बिखराव से बीजेपी के लिए जीत का समीकरण बन रहा है. इसीलिए बीजेपी के दोनों उम्मीदवारों ने हिंदू समुदाय के वोटों पर फोकस किया है.

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