नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने वैवाहिक जीवन से जुड़ा एक बड़ा फैसला सुनाया है. फैसले के अनुसार, अगर कोई महिला अपने दूसरे पति के साथ वैवाहिक जीवन व्यतीत कर रही है, तो वह भले ही पहली शादी से कानूनी रूप से बंधी हो लेकिन वह दूसरे पति से भरण-पोषण पाने की हकदार होगी। सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना हाईकोर्ट के 2017 के आदेश को पलटते हुए यह निर्णय दिया, जिसमें महिला की याचिका खारिज कर दी गई थी।

क्या है मामला?

न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण केवल पत्नी को मिलने वाला लाभ नहीं है, बल्कि यह पति का कानूनी और नैतिक दायित्व भी है। बता दें पीड़िता की पहली शादी 1999 में हुई थी, जिससे 2000 में एक बेटे का जन्म हुआ। कुछ सालों बाद दंपती अलग हो गए और 2011 में एक करारनामे के कारण विवाह का अंत कर दिया गया। इसके बाद महिला ने अपने पड़ोसी से शादी कर ली, लेकिन कुछ समय बाद उसका दूसरा पति विवाह को अवैध करार देने के लिए अदालत पहुंच गया।

2006 में अदालत ने यह विवाह अमान्य घोषित कर दिया। इसके बाद महिला ने दोबारा उसी व्यक्ति से शादी कर ली, इससे उन्हें 2008 में एक बेटी हुई। बाद में मतभेद बढ़ने पर महिला ने दहेज उत्पीड़न का मामला दर्ज कराया और भरण-पोषण की मांग की।

महिला के पक्ष में फैसला क्यों

सुनवाई के दौरान महिला के वकील ने दलील दी कि वह अपने दूसरे पति के साथ विवाहित जीवन बिता रही थी और दोनों ने मिलकर एक बच्ची की परवरिश भी की। इसलिए उसे भरण-पोषण का अधिकार मिलना चाहिए। दूसरी ओर, महिला के दूसरे पति ने तर्क दिया कि पहली शादी कानूनी रूप से समाप्त नहीं हुई थी, इसलिए महिला को उसकी पत्नी नहीं माना जा सकता और वह भरण-पोषण की हकदार नहीं है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सामाजिक कल्याण के मामलों में न्यायालय को लाभकारी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि महिला को भरण-पोषण से वंचित नहीं किया जा सकता।

हाईकोर्ट ने क्या कहा था?

तेलंगाना हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि महिला को प्रतिवादी की कानूनी पत्नी नहीं माना जा सकता, क्योंकि उसकी पहली शादी अभी भी वैधानिक रूप से जारी थी। हालांकि हाईकोर्ट ने महिला की बेटी को भरण-पोषण का हकदार माना था। अब सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद महिला को दूसरे पति से भरण-पोषण मिलने का रास्ता साफ हो गया है।

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