सूरत: साल 2022 की यह बात है जब शिक्षिका किरण जगदेवराव वानखेडे ने स्कूल में ‘मेरा बगीचा’ नाम का एक नया प्रयोग चालू किया था। जिसमें बच्चे अपने जन्मदिन पर स्कूल में चॉकलेट ना बांटे उसकी जगह एक पौधा स्कूलके इकोक्लब को दान करें। स्कूल के इकोक्लब को हरा भरा और खूबसूरत बनाएं। पेड़ों के प्रति उनके मन में स्नेह और उनको बचाने के लिए बच्चे प्रयत्नशील बने ।
इस प्रवृत्ति में स्कूल के बच्चों ने बढ़ चढ़ के हिस्सा लिया। इन्हीं में से एक कक्षा 8 की दिपाली(14 साल) थी। दिपाली होनहार विद्यार्थीनी थी। इकोक्लब की सूचना जैसे ही दी जाती। दिपाली दौड़ पड़ती। पेड़ पौधों को संभालने में सबसे आगे। किरण टीचर बहुत बार उसे मना करती कि आज आपकी क्लास का नंबर नहीं है तो भी कुछ ना कुछ बहाना बनाकर वह पीछे-पीछे आ जाती थी। जब उसे डाट पड़ती तो वह छोटा सा मुंह बनाकर खड़ी हो जाती। ऐसा वैसा मुंह बनाती आखिरकार टीचर लाचार होकर उसे इको क्लब में ले ही जाना पड़ता था।
स्कूल की टीचर किरण बताती है कि आठवीं कक्षा के सत्रांत परीक्षा के बाद दिपाली मुझे स्कूल में नहीं दिखी। महीना हो गया दिपाली ईकोक्लब आई नहीं थी। मैंने उसके टीचर से पूछा, तो टीचर ने कहा कि “वह बीमार है।” मुझे लगा बुखार होगा। रोज़ इकोक्लब में जाने के बाद मुझे दिपाली की कमी खलती थी । फिर से मैं दूसरे महीने में मैंने उसके टीचर से पूछा तो टीचर ने कहा कि “दिपाली की दोनों किडनिया फेल हो गई है और उसका बचना नामुमकिन है।”
यह बात सुनते ही मन में प्रलय उठा। मैं उदास हो गई मेरी बच्ची को क्या हो गया ? दिपाली को डायलिसिस पर रखा गया। एक दिन वह अपने पापा से ज़िद करने लगी कि मुझे टीचर से मिलना है। दिपाली मुझे मिलने आई दिपाली की हालत देखकर मन बड़ा दुखी हुआ। दिपाली ने मेरे पास आते ही पूछा,”किरण टीचर अपने इकोक्लब के पेड़ हरे भरे हैं ना? मैंने उससे कहा,” हां आप इसकी चिंता मत कीजिए आपकी तबीयत पर ध्यान दिजिए। वह मुझे बोली टीचर मैं अच्छी होकर आऊंगी और ईकोक्लब में फिर से मेरे पौधों को हरा भरा बनाऊंगी। यह बात सुनकर मेरे आंखों से आंसू आने लगे पर उन आंसओं को रोक कर मैंने स्मित हास्य देकर दिपाली को हां बोला ।
कुछ दिनों के बाद समाचार आया की दिपाली की हालत गंभीर है और वह अब चल – फिर नहीं सकती। उसी में उसका जन्मदिन आया। उसके पापा ने उसके लिए सुंदर सी फ्रॉक लाइ। दिपाली को फ्रॉक पहनने के लिए कहां तो उसने कहा कि मुझे नए कपड़े नहीं चाहिए मुझे एक पौधा लाकर दो मुझे स्कूल में देना है, किरण टीचर को देना है। दिपाली अब कुछ ही दिन की मेहमान थी लेकिन वह बार-बार पापा से कह रही थी कि “मुझे किरण टीचर को एक पौधा देना है मेरे स्कूल के बगीचे में लगाना है।”
फिर अचानक से समाचार आया दिपाली का देहांत हो गया। उसकी माता जोर-जोर से विलाप कर रहे थे। तभी एक औरत आई और बोलने लगी दिपाली बड़ी प्यारी थी। उसका जन्मदिन था उसके पापा ने उसके लिए नई फ्रॉक लाई पर उसे फ्रॉक नहीं चाहिए थी। न जाने क्या बोल रही थी? कि मुझे एक पौधा लाकर दो स्कूल में देना है । यह बात सुनकर टीचर किरण वानखेड़े के आंखों नाम हो गई।
मुझे उस लड़की की कमी खलती है। जब मैं हरे भरे पेड़ और पौधों के तरफ देखती हूं ,तो मुझे उसकी मौजूदगी का एहसास होता है। ऐसा क्या हुआ की एक टीचर आपने स्टूडेंट को हर पाल याद कर रहीं हैं। शिक्षिका किरण यह बोले बहुत भावुक हुईं।
स्कूल की एक टीचर द्वारा चलाए एक साधारण सी प्रवृत्ति का इसका इतना गहरा असर दिपाली पर होगा यह तो किसी ने नहीं सोचा था। आज दिपाली तो नहीं है लेकिन वह जाते-जाते लोगों को यह संदेश दे गई की जन्मदिन पर हजारों रुपये का व्यय ना करके पेड़ लगाए। यह प्यारा संदेश आज स्कूल के सभी बच्चों में बस गया।
read Also…