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डिजिटल हैं तो अनसेफ हैं, डिजिटल अरेस्ट पर अखिलेश यादव ने उठाया सवाल

सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने देश में डिजिटल गिरफ्तारियों की बढ़ती संख्या पर चिंता व्यक्त की और पुलिस पर सवाल उठाते हुए पूछा कि क्या इन घटनाओं में सरकार की मिलीभगत है.

Akhilesh (1)
inkhbar News
  • Last Updated: December 7, 2024 11:08:56 IST

नई दिल्ली: समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने डिजिटल गिरफ्तारियों की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताते हुए सरकार पर सवाल उठाए हैं. उन्होंने कहा कि ऐसी घटनाओं में न सिर्फ पुलिस की वर्दी पहनकर बल्कि थाने का रौब दिखाकर भी लोगों को धमकाया जा रहा है. उन्होंने पूछा कि क्या इसमें सरकार की कोई मिलीभगत है.

सपा अध्यक्ष ने नोएडा के एक परिवार की डिजिटल गिरफ्तारी और उनसे पैसे ऐंठने की घटना का जिक्र करते हुए सारा पैसा वापस दिलाने की अपील की. ​​उन्होंने सोशल मीडिया साइट एक्स पर लिखा कोई भी व्यक्ति डिजिटल गिरफ्तारी जैसे फर्जी तरीकों का इस्तेमाल करके नकली वर्दी में किसी व्यक्ति से बात नहीं करता है.बल्कि वे वीडियो पर एक नकली पुलिस स्टेशन बनाकर उसे दिखाते हैं और धमकी देकर ऑनलाइन पैसे भी ऐंठते हैं.

बीजेपी सरकार इसी डिजिटल इंडिया को विकसित करने की बात करती है. यूपी पुलिस से अपील है नोएडा में ठगे गए परिवार का पूरा पैसा वापस दिलाया जाए और जालसाजों को पकड़ा जाए. नहीं तो जनता अपना नारा लगाएगी: डिजिटल हैं तो असुरक्षित हैं.

आम जनता पूछ रही सवाल

जब ऑनलाइन एक खाते से दूसरे के खाते में पैसे ट्रांसफर हो रहे हैं तो उसे पकड़ा क्यों नहीं जा रहा?

क्या सरकार के पास उस व्यक्ति का कोई KYC नहीं है जिसके खाते में पैसे जा रहे हैं?

आम जनता को बार-बार KYC के लिए चक्कर लगवाना पड़ता है और क्या अपराधियों को पूरी छूट है?
ऐसी घटनाएं सिर्फ भाजपा राज में ही क्यों हो रही हैं? क्या यह कोई बड़ी सरकारी मिलीभगत का गोरखधंधा चल रहा है? आज के खाताधारक कहते हैं, हमें भाजपा नहीं चाहिए.

आपको बता दें कि पिछले कुछ दिनों में देश में डिजिटल गिरफ्तारी की कई घटनाएं देखने को मिली हैं, जहां नकली पुलिस बनकर लोगों को फोन पर बंधक बना लिया जाता है और फिर परिवार के किसी सदस्य के थाने में होने या किसी गंभीर मामले में शामिल होने का आरोप लगाकर उनसे पैसे ऐंठ लिए जाते हैं. हैरानी की बात यह है कि यह पैसा डिजिटल तरीके से ट्रांसफर होता है, फिर भी पुलिस ऐसी घटनाओं को सुलझा नहीं पाती.

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