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काशी के कारीगरों ने गमछे पर दिखाया महाकुंभ का इतिहास, जानें कितनी होगी कीमत

प्रयागराज और काशी के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को और गहराई से दिखाने के लिए काशी के कारीगरों ने महाकुंभ 2025 के लिए एक विशेष गमछा तैयार किया है। यह गमछा काशी के पारंपरिक कारीगरों की महीनों की मेहनत और रिसर्च का परिणाम है। इसकी डिजाइन सौम्या यदुवंशी ने तैयार की है, जिसमें समुद्र मंथन और महाकुंभ की पूरी गाथा को दर्शाया गया है।

Kashi artisans showed the history of Mahakumbh 2025
inkhbar News
  • Last Updated: December 13, 2024 23:41:26 IST

लखनऊ: प्रयागराज और काशी के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को और गहराई से दिखाने के लिए काशी के कारीगरों ने महाकुंभ 2025 के लिए एक विशेष गमछा तैयार किया है। इस गमछे पर महाकुंभ की उत्पत्ति, समुद्र मंथन और इससे जुड़े प्रमुख घटनाओं को खूबसूरती से उकेरा गया है। यह अनूठा गमछा प्रयागराज भेजा जाएगा, जहां पहले चरण में एक हजार गमछे साधु-संतों को मुफ्त वितरित किए जाएंगे। इसके बाद, इसे लागत मूल्य पर कुंभ क्षेत्र में वितरित किया जाएगा।

डिजाइन और महीनों की मेहनत

यह गमछा काशी के पारंपरिक कारीगरों की महीनों की मेहनत और रिसर्च का परिणाम है। इसकी डिजाइन सौम्या यदुवंशी ने तैयार की है, जिसमें समुद्र मंथन और महाकुंभ की पूरी गाथा को दर्शाया गया है। यह पहला ऐसा गमछा है जिसमें धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहर को इतनी बारीकी से शामिल किया गया है। कारीगर अंकित और विकास ने इस डिजाइन को कपड़े पर उकेरा है। विकास का कहना है कि इस गमछे का उद्देश्य केवल सनातन धर्म का प्रचार करना है, न कि व्यापार। इसकी लागत मात्र 80 रुपये रखी गई है।

बनारसी कपड़ा उद्योग अपनी उत्कृष्ट कारीगरी के लिए दुनियाभर में मशहूर है। अब महाकुंभ के लिए तैयार यह गमछा बनारसी कला की नई मिसाल पेश कर रहा है। पहले इस गमछे का डिज़ाइन कंप्यूटर पर तैयार किया गया और फिर इसे कॉटन कपड़े पर छापा गया।

प्रयागराज तक पहुंचाने की जिम्मेदारी

इस विशेष गमछे को प्रयागराज तक पहुंचाने की जिम्मेदारी बनारसी साड़ी बेचने वाले गद्दीदारों ने उठाई है। उनका कहना है कि महाकुंभ के दौरान 15,000 से अधिक गमछे बिना किसी लाभ के वितरित किए जाएंगे। महाकुंभ में इस दुपट्टे का वितरण न केवल काशी और प्रयागराज के सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करेगा, बल्कि सनातन धर्म के प्रचार में भी अहम भूमिका निभाएगा। यह पहल महाकुंभ के दौरान एक नई सांस्कृतिक परंपरा की शुरुआत करेगी।

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