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यूपी में ओबीसी आरक्षण को लेकर जमकर राजनीति, जानिए क्या है जातियों का समीकरण

लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने कल यूपी नगर निगम चुनाव को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। इस फैसले में उन्होंने सरकार की दलिलों को खारिज करते हुए, यूपी निकाय चुनाव को ओबीसी आरक्षण के बिना ही कराने का निर्देश दिया है। इसके अलावा ओबीसी आरक्षण देने के लिए ट्रिपल टेस्ट कराने का आदेश […]

UP Election
inkhbar News
  • Last Updated: December 28, 2022 09:59:09 IST

लखनऊ। इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने कल यूपी नगर निगम चुनाव को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है। इस फैसले में उन्होंने सरकार की दलिलों को खारिज करते हुए, यूपी निकाय चुनाव को ओबीसी आरक्षण के बिना ही कराने का निर्देश दिया है। इसके अलावा ओबीसी आरक्षण देने के लिए ट्रिपल टेस्ट कराने का आदेश जारी किया गया है। हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद उत्तर प्रदेश में ओबीसी आरक्षण को लेकर जमकर राजनीति हो रही है। आईए बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में जातियों का क्या समीकरण है।

ओबीसी आरक्षण को लेकर गरमाई राजनीति

यूपी निकाय चुनाव को लेकर हाईकोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि ये चुनाव बिना आरक्षण के संपन्न कराया जाए। अब ओबीसी के लिए आरक्षित सीटें सामान्य मानी जाएंगी। हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद सूबे के मुख्यमंत्री ने एक बयान दिया है, जिसमें उन्होंने कहा है के हाईकोर्ट के इस फैसले को हम सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देंगे और यूपी निकाय चुनाव बिना ओबीसी आरक्षण के संपन्न नहीं होगा। योगी के इस बयान के बाद राज्य की विपक्षी पार्टियां उनपर हमलावर हो गईं। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने कहा कि आरक्षण विरोधी बीजेपी निकाय चुनाव में ओबीसी आरक्षण को लेकर अपनी झूठी सहानभूति दिखा रही है। अखिलेश के अलावा शिवपाल सिंह ने भी इसे दुर्भाग्यपूर्ण बताया है।

आरक्षण नहीं होना बीजेपी के लिए झटका

बता दें कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ओबीसी के एक बड़े वर्ग वोट के कारण ही जीतती नजर आती है। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में औऱ साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ओबीसी जातियों के समर्थन पर ही सत्ता में जीत दर्ज की थी। ऐसे में हाईकोर्ट का ये फैसला की निकाय चुनाव बिना ओबीसी आरक्षण के कराया जाए, बीजेपी के लिए एक बड़ा झटका साबित हो सकता है।

भाजपा के पक्ष में पड़ता है ओबसी वोट

अगर यूपी में जातिय समीकरण की बात करें तो यहां पर साल 2014 लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने 80 लोकसभा सीटों में से 71 सीटों पर जीत दर्ज की थी। वहीं साल 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी 300 से ज्याद सीटें जीतने में कामयाब हुई थी। इन दो चुनावों में अगर यादवों को छोड़ दिया जाए तो इनके अलावा सभी जातियों ने बीजेपी को खुलकर समर्थन दिया था। अब हाईकोर्ट के फैसले के बाद यूपी के विरोधी पार्टी बीजेपी को ओबीसी विरोधी बता रहे हैं।

यूपी में ओबीसी की 35 फीसदी आबादी

बता दें यूपी में कुल 234 पिछड़ी जातियां हैं। वहीं लगभग 35 फीसदी आबादी ओबीसी से आती है। इन जातियों में मुख्य रुप से यादव, कुर्मी, मौर्य, सैनी, साहू और कश्यप समेत कई और जातियां शामिल हैं। उत्तर प्रदेश का पिछड़ा वर्ग सामाजिक न्याय समिति ने एक रिपोर्ट में 27 फीसदी आरक्षण को तीन भागों में बांटने की सिफारिश की है, जो कि इस प्रकार हो पिछड़ा वर्ग, अति पिछड़ा वर्ग और सर्वाधिक पिछड़ा वर्ग। इसके अलावा पिछड़ा वर्ग में कम से कम जातियों को शामिल करने की मांग की गई है, जिसमें यादव और कुर्मी जैसी संपन्न जातियां शामिल हों।

ऐसा है यूपी में आरक्षित सीटों को नंबर

गौरतलब है कि यूपी के अंदर कुल 762 शहरी निकाय हैं। इसमें 17 म्युनिसिपल कॉरपोरेशन, 545 नगर पंचायत और 200 नगरपालिका परिषद हैं। इन शहरी निकायों की कुल लगभग 5 करोड़ है। वहीं 17 म्युनिसिपल कॉरपोरेशन की दो सीटों को अनुसूचित जातियों (एससी) के लिए आरक्षित किया गया है। इन दो में एक आगरा की सीट है, जो कि महिला उम्मीदवार के लिए आरक्षित है। वहीं 4 मेयर की सीट ओबीसी के लिए आरक्षित है।