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जब गिरेंगी 100 मीटर ऊंची सुपरटेक की ये इमारतें तो ये होगा नज़दीकी सोसाइटी पर असर

नोएडा, सुपरटेक ट्विन टावर को गिराए जाने का समय अब बहुत नज़दीक आ गया है. सुपरटेक इमारत को गिराए जाने की तारीख तय होने के साथ ही इसे गिराए जाने की प्रक्रिया के भी चर्चे हो रहे हैं. बताया जा रहा है कि इसके लिए 3000 किलो से ज्यादा विस्फोटक का इस्तेमाल किया जाएगा और […]

Noida Twin Towers
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  • Last Updated: August 24, 2022 21:44:08 IST

नोएडा, सुपरटेक ट्विन टावर को गिराए जाने का समय अब बहुत नज़दीक आ गया है. सुपरटेक इमारत को गिराए जाने की तारीख तय होने के साथ ही इसे गिराए जाने की प्रक्रिया के भी चर्चे हो रहे हैं. बताया जा रहा है कि इसके लिए 3000 किलो से ज्यादा विस्फोटक का इस्तेमाल किया जाएगा और कुछ ही सेकेंड में ये बिल्डिंग नीचे गिर जाएगी. सुपरटेक के दो टावर गिराए जाने को लेकर कई तरह के तथ्य इंटरनेट पर भी बताए गए हैं, लेकिन फिर भी लोगों के मन में अभी बिल्डिंग को गिराए जाने को लेकर कई सवाल हैं. इसी बीच, लोग ये भी जानना चाहते हैं कि जब बिल्डिंग गिरेगी तो इसका आसपास की सोसाइटी पर क्या असर होगा.

क्या होगा असर ?

सुपरटेक की इमारत गिराए जाने के चलते आसपास की सोसाएटी पर पड़ने वाले असर को लेकर कहा जा रहा है कि इस इमारत के गिरने से आस-पास की बिल्डिंग पर कोई असर नहीं पड़ेगा. साथ ही ये भी कहा गया है कि जब भी इन ऊंची बिल्डिंग को गिराया जाता है तो काफी प्लानिंग की जाती है और जिस तरह ये बिल्डिंग गिरती है तो उससे आस-पास की बिल्डिंग पर कोई डैमेज नहीं होता है. पहले रिसर्च करके मलबे के गिरने के डायरेक्शन को बदल दिया जाता है, जिससे किसी खाली जगह की तरफ मलबा गिरता है. इसमें एक साथ नहीं बल्कि टुकड़ों में बिल्डिंग गिरती है और मलबा भी उसी जगह पर गिरता है.

इमारत गिरने के संबंध में कहा गया है कि ‘अगर एक दम नजदीक में कोई बिल्डिंग होती है तो उसमें सिर्फ धूल जाने का खतरा रहता है. इसके अलावा कोई भी खतरा नहीं रहता है, इसमें भी धूल से बचने के लिए कई तरीकों का उपयोग किया जाता है. धूल धुआं आदि को लेकर भी प्रबंध किया जाता है, लेकिन फिर भी हल्की धूल तो जाती है. काफी पानी का भी इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन धुल की मात्रा काफी ज्यादा होती है, जिससे पानी का ज्यादा असर देखने को नहीं मिलता है.

बता दें, बिल्डिंग गिराने के लिए जिन विस्फोटक का इस्तेमाल किया जाता है, वो आरडीएक्स से अलग तरह के होते हैं. इन्हें बिल्डिंग की साइज आदि के हिसाब से डिजाइन कर लगाया जाता है, इसमें सबसे आखिरी एक्सप्लोसिव इलेक्ट्रिक करंट से जुड़ा होता है, जबकि अन्य विस्फोटक नॉन इलेक्ट्रिक वायर से जुड़े होते हैं.

 

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