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जोशीमठ की आपदा पर बोले स्वामी निश्चलानंद सरस्वती-‘विकास के नाम पर पर्वतों को तोड़ा…’

देहरदून। जोशीमठ में स्थिति बहुत नाजुक बनी हुई है। बता दें , घरों और इमारतों में दरारें आने का सिलसिला लगातार बढ़ता ही जा रहा है और वहां की जमीन धंसती जा रही है और स्थानीय लोग डर के साये में रहने पर मजबूर हो गए है। मिली जानकारी के मुताबिक, असुरक्षित स्थानों से लोगों […]

Nischalananda Saraswati On Joshimath Sinking
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  • Last Updated: January 11, 2023 13:28:02 IST

देहरदून। जोशीमठ में स्थिति बहुत नाजुक बनी हुई है। बता दें , घरों और इमारतों में दरारें आने का सिलसिला लगातार बढ़ता ही जा रहा है और वहां की जमीन धंसती जा रही है और स्थानीय लोग डर के साये में रहने पर मजबूर हो गए है। मिली जानकारी के मुताबिक, असुरक्षित स्थानों से लोगों को रेस्क्यू करने का काम अब भी लगातार जारी है। रिपोर्ट के अनुसार, जोशीमठ में आई विपदा के लिए स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने पहाड़ों पर होने वाले विकास कार्यों को इन सब का जिम्मेदार ठहराया है।

जोशीमठ की मौजूदा स्थिति को लेकर निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज ने बताया कि प्रकृति के साथ छेड़छाड़ नहीं करना चाहिए और न होनी चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि पर्वत, वन और नदी पृथ्वी के संतुलन को बनाए रखने में मदद करता है । लेकिन विकास के नाम पर पर्वतों को रास्ता बनाने के लिए तोड़ा गया. वनों को काटा गया और नदियों का जल दूषित किया गया, जिसका परिणाम सबके सामने है।

इमारतों पर बना X निशान

बता दें , मंगलवार यानि 10 जनवरी को ही प्रशासन ने उन घरों और होटलों को चिह्नित कर लिया था, जोकि बेहद असुरक्षित और खतरनाक हैं। जानकारी के अनुसार , ऐसी सभी इमारतों पर रेड क्रॉस (X) निशान बनाए जा रहा है । बताया जा रहा है कि इन सभी मकानों को गिराया भी जा सकता है और निशान लगने से स्थानीय लोगों को इस बात का भी पता लगता रहेगा कि किन-किन इमारतों से उन्हें दूरी बनाकर रखनी है।

गंगासागर मेले पर बोले निश्चलानंद

रिपोर्ट के अनुसार , जोशीमठ की विपदा पर टिप्पणी करने वाले निश्चलानंद सरस्वती महाराज बंगाल में एक कार्यक्रम के लिए गए थे। वहां पर उन्होंने बंगाल के गंगासागर मेले में होने वाली भीड़ पर प्रतिक्रिया दी थी। बता दें , गंगासागर मेले के आयोजन पर भीड़ मकर सक्रांति के पहले से शुरू हो जाती है। इस सागर में डुबकी लगाते लोगों को देखा जाता है। इस पर निश्चलानंद सरस्वती जी महाराज ने बताया था कि 100 वर्षों में एक बार तिथि में बदलाव होता ही है। ये 14 या 15, तिथि के हिसाब से होना चाहिए, न कि भीड़ के हिसाब से इसका आयोजन किया जाना चाहिए ।

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