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कोई शक सनातन ही सत्य है! कुंभ का ऐसा आश्रम, जहां सभी महामंडलेश्वर विदेशी, हिंदी नहीं आती मगर संस्कृत में फर्राटेदार

एक ऐसा अखाड़ा भी हैं, जहां पर सभी 9 महामंडलेश्वर विदेशी बनाये गए हैं। इस आश्रम में 40 से ज्यादा देशों के भक्त हैं और सबने हिन्दू धर्म अपना लिया है।

Shakti Dham
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  • Last Updated: February 4, 2025 11:37:10 IST

प्रयागराज/नई दिल्ली। प्रयागराज में लगे महाकुंभ में एक ऐसा अखाड़ा भी हैं, जहां पर सभी 9 महामंडलेश्वर विदेशी बनाये गए हैं। इस आश्रम में 40 से ज्यादा देशों के भक्त हैं और सबने हिन्दू धर्म अपना लिया है। सेक्टर-17 में निर्मोही अनी अखाड़े से जुड़ीं साईं मां के इस आश्रम का नाम शक्ति धाम हैं। इसमें बनाए गए 9 महामंडलेश्वर में से सिर्फ एक को हिंदी आती है लेकिन संस्कृत के सारे श्लोक उन्हें कंठस्थ हैं।

कोई डॉक्टर तो कोई शिक्षक

इन सभी भक्तों में से कोई अमेरिका में डॉक्टर रहे हैं तो कोई जापान में शिक्षक। अपने-अपने देशों में ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए ये सनातन के प्रचार में लगे हुए हैं। यह आश्रम जिस साईं मां से जुड़ा हुआ है, उनका पूरा नाम मीराबाई सर्वानंदमयी लक्ष्मी देवी हैं। मीराबाई सर्वानंदमयी लक्ष्मी देवी साईंं मां मिश्रा का जन्म मॉरीशस में हुआ और परवरिश फ़्रांस में। फिलहाल वो अमेरिका में रहती हैं। साल 2019 में साईं मां ने 9 विदेशी शिष्यों को अपने अखाड़े का महामंडलेश्वर बनाया। इसमें 6 पुरुष और 3 महिला हैं।

सनातन के लोग भाग्यशाली

अखाड़े के महामंडलेश्वर अनंत दास का कहना है कि वो अमेरिकन है लेकिन सनातन से उन्हें जुड़ाव है। यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्सास में फाइनेंस की पढ़ाई करने के दौरान वो जीवन से उदास हो गए थे। उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा था। तभी साईंं मां ने समझाया कि सनातन ही सत्य है। मैंने 2013 के प्रयागराज कुंभ में संन्यास ले लिया। वाराणसी के शक्तिधाम आश्रम में रहता हूँ। सनातन के लोग कितने भाग्यशाली हैं। सब शांति से रह रहे हैं। यहां कोई युद्ध नहीं है। आश्रम में सभी साथ में बैठकर भजन करते हैं , भोजन करते हैं।

काशी का होकर रह गया

इस अखाड़े में रह रहे सबसे पुराने संन्यासी स्वामी परमेश्वर दास जी हैं, वो भी अमेरिका से ही हैं। 30 सालों से आश्रम में रह रहे हैं। शाकाहार अपनाकर भक्ति में अपना जीवन समर्पण कर दिया है। परमेश्वर दास हिला सशक्तीकरण के लिए भी काम कर रहे हैं। साइकोलॉजी पर उन्होंने 6 किताबें लिखी हैं। उनका कहना है कि साधना के लिए सनातन से अच्छा रास्ता कोई है ही नहीं। कई वर्ष हो जाते हैं अपने देश गए हुए। काशी ही सब कुछ हो गया है। शाम में भजन-कीर्तन होता है। हिंदी न आने की वजह से यहां प्रवचन भी अंग्रेजी में ही होता है।

 

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