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UP के इस 34 साल पुराने चर्च में गाई जाती है भोजपुरी प्रेयर, जानें क्यों?

देशभर में हर कोई क्रिसमस के लिए बेहद एक्साइटेड है। वहीं क्या आप जानते है कि वाराणसी के पिंडरा गांव में मसीही समाज क्रिसमस के जश्न को भोजपुरी संस्कृति के साथ अनोखे अंदाज में मानते है। भोजपुरी चर्च में क्रिसमस का कार्यक्रम सुबह 10 बजे शुरू होता है, जहां महिलाएं और बच्चे प्रार्थना और कैरोल में शामिल होते है।

Bhojpuri prayer is sung in this 34 year old church of UP, know why
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  • Last Updated: December 24, 2024 12:11:37 IST

लखनऊ: देशभर में हर कोई क्रिसमस के लिए बेहद एक्साइटेड है। वहीं क्या आप जानते है कि वाराणसी के पिंडरा गांव में मसीही समाज क्रिसमस के जश्न को भोजपुरी संस्कृति के साथ अनोखे अंदाज में मानते है। यहां करीब 250 मसीही परिवार इकट्ठा होकर यीशु के जन्मदिन का जश्न भोजपुरी में कैरोल गाकर मनाते हैं। यह परंपरा पूर्वांचल की संस्कृति से प्रेरित है और सोहर की तर्ज पर यीशु के लिए भजन गाए जाते हैं।

कैरोल की तैयारी

पिंडरा के भोजपुरी चर्च में क्रिसमस पर “बैतलहेम में जनम लियले हो मरियम के ललनवा, सब लोग झूमें लगले हो प्रभु के भवनवा” जैसे भजन गूंजते हैं। मसीही समाज की महिलाएं, बच्चे, युवा और बुजुर्ग इस विशेष दिन के लिए कैरोल की तैयारी करते हैं। वहीं ऊषा मसीही, जो लंबे समय से यहां कैरोल गा रही हैं उनका कहना हैं कि यह परंपरा पूर्वांचल की जन्मोत्सव गीत-परंपरा से प्रेरित है।

चर्च में दिनभर रही चहल-पहल

भोजपुरी चर्च में क्रिसमस का कार्यक्रम सुबह 10 बजे शुरू होता है, जहां महिलाएं और बच्चे प्रार्थना और कैरोल में शामिल होते है। वहीं दोपहर 1 बजे यीशु के जन्म की खुशी में केक काटा जाता है और सभी को बंटा जाता है. रात 10 बजे से कैंडल जलाकर खास प्रार्थना की जाती है. इस दौरान चर्च में यीशु के प्रेम और उनकी शिक्षाओं का संदेश भोजपुरी में दिया जाता है.

भोजपुरी चर्च का इतिहास

वाराणसी का यह चर्च 1992 में शुरू हुआ। इसका उद्देश्य पूर्वांचल के लोगों तक बाइबिल का संदेश उनकी मातृभाषा में पहुंचाना था। पास्टर चंद्रिका बताते हैं कि भोजपुरी भाषा में चर्च स्थापित करने का विचार इसलिए आया क्योंकि यहां के लोग अंग्रेजी और हिंदी में असहज महसूस करते थे। यह चर्च हर रविवार सुबह 10 से 12 बजे तक खुलता है, जहां बाइबिल का पाठ भोजपुरी में किया जाता है। इस चर्च की खासियत यह है कि सिर्फ मसीही समाज ही नहीं, बल्कि अन्य समुदायों के लोग भी क्रिसमस पर यहां आते हैं।

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